Khabarwala 24 News New Delhi : Elections Jail Vote Rules जब कैदी जेल में रहते हुए चुनाव लड़ सकता है तो जेल में रहते हुए वोट क्यों नहीं डाल सकता है। इसको लेकर अपने-अपने नियम हैं। असम के डिब्रूगढ़ जेल में बंद खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह पंजाब के खडूर साहिब से निर्दलीय चुनाव लड़ने की सूचना आ रही है। हालाँकि, अमृतपाल की माँ बलविंदर कौर ने इस मीडिया रिपोर्ट का खंडन किया है और कहा है कि इसको लेकर अभी निर्णय नहीं लिया गया है।
वहीं, एक घोटाले में तिहाड़ जेल में बंद जनता द्वारा चुने गए आम आदमी पार्टी के संयोजक एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को वोट देने की इजाजत नहीं है। इन दोनों मामलों पर बहस हो रही है। लोगों का कहना है कि जब देश की सुरक्षा के घातक एक आतंकवाद समर्थक व्यक्ति, जब जेल में रहते हुए चुनाव लड़ सकता है तो एक घोटाले में जेल में बंद राजनेता, जो अभी तक दोषी भी साबित नहीं हुआ है, वह अपना वोट क्यों नहीं डाल सकता है।
अपने-अपने तर्क और अपने-अपने दावे (Elections Jail Vote Rules)
सबके अपने-अपने तर्क और दावे हैं, लेकिन कानून का अपना रास्ता और तरीका है। भारत में जेल में रहते हुए चुनाव लड़ने की परंपरा बहुत पुरानी है। कहा जाता है कि इसकी शुरुआत पूर्वांचल के गैंगस्टर हरिशंकर तिवारी ने सबसे पहले जेल में रहते हुए चुनाव जीता था। इसके बाद बाहुबलियों और गैंगस्टरों में यह तरीका तेजी से प्रसिद्ध हुआ और जेल में रहते हुए कई गैंगस्टर एवं बाहुबली चुनाव जीते। इनमें मुख्तार अंसारी, अमरमणि त्रिपाठी दर्जनों प्रमुख नाम हैं। ये प्रक्रिया आज भी जारी है।
जेल में बंद कैदी ऐसे लड़ लेता है चुनाव (Elections Jail Vote Rules)
लगभग डेढ़ दशक पहले पटना हाई कोर्ट में ऐसा मामला आया, जिसमें जेल की सजा काट रहे एक कैदी ने चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की थी। इस पर पटना हाई कोर्ट ने कहा था कि जब कैदियों को वोट देने का अधिकार नहीं है तो चुनाव लड़ने जैसी जिम्मेदारी की छूट कैसे मिल सकती है। इसके बाद अदालत ने उसकी अर्जी खारिज कर दी थी। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट के फैसले को मंजूरी दी थी।
राजनैतिक घमासान में भी विपक्ष अंदर (Elections Jail Vote Rules)
हालाँकि, साल 2013 में कॉन्ग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने कानून में बदलाव करते हुए जेल में बंद लोगों को चुनाव में खड़ा होने की इजाजत दे दी। तर्क दिया गया कि कई बार राजनैतिक लड़ाई में भी लोग विपक्ष को अंदर करवा देते हैं। ऐसे में जेल में होने की वजह से एक काबिल व्यक्ति चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जाएगा। इसके तहत लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 62(5) में संशोधन हुआ और जेल में रहते हुए चुनाव लड़ने की छूट मिल गई। हालाँकि, वोट नहीं दे सकते।
पीठासीन अधिकारी के सामने नामांकन (Elections Jail Vote Rules)
आरोप से मुक्त होने या सजा पूरी होने के बाद कोई भी व्यक्ति अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकता है। बताना जरूरी है कि चुनाव की प्रक्रिया में जेल में बंद कैदियों को वोट देने का अधिकार नहीं होता है, लेकिन वे चुनाव लड़ लेते हैं। हालाँकि, इसके लिए महत्वपूर्ण है कि कैदी विचाराधीन होना चाहिए। चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति को पीठासीन अधिकारी के सामने नामांकन पत्र देना होता है।
सजायफ्ता कैदियों के चुनाव पर रोक (Elections Jail Vote Rules)
ऐसी स्थिति में सवाल उठेगा कि जेल में बंद कैदी पीठासीन अधिकारी के समक्ष कैसे हाजिर होगा। झाँसी के वित्त एवं राजस्व विभाग के एडीएम वरुण पांडेय का कहना है कि अगर कैदी जेल से चुनाव लड़ते हैं तो वे अपने प्रतिनिधि के जरिए नामांकन दाखिल कर सकते हैं। तय नियमों के तहत, अधिकतर मामलों में यह प्रतिनिधि परिवार का ही कोई सदस्य होता है। नए नियमों के अनुसार, सजायफ्ता कैदियों के चुनाव लड़ने पर पूरी तरह रोक है।
कानून में भी वोट देने का अधिकार (Elections Jail Vote Rules)
जेल में बंद कैदियों को मताधिकार से वंचित करने का प्रमाण अंग्रेजी जब्ती अधिनियम 1870 में मिलता है। उस दौरान देशद्रोह या गुंडागर्दी के दोषी व्यक्तियों को मताधिकार से अयोग्य ठहरा दिया जाता था और उन्हें वोट देने से वंचित कर दिया जाता था। यही नियम गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 में भी लागू रहा। इसके तहत खास सजा काट रहे लोगों को वोट देने से रोक दिया गया था।
जब वह आरोपी, दोषी या जेल में हो (Elections Jail Vote Rules)
हालाँकि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में किसी व्यक्ति को तब मताधिकार का अधिकार वापस ले लिया जाता है, जब वह आरोपित या दोषी हो या जेल में हो। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 62 वोट देने का अधिकार देती है। इसकी धारा 62(5) के तहत कुछ लोगों को अयोग्य ठहराया गया है। कोई भी व्यक्ति किसी भी चुनाव में मतदान नहीं करेगा, यदि वह जेल में बंद है, चाहे वह सजा के तहत कारावास में बंद है या परिवहन या अन्यथा, अथवा पुलिस की वैध हिरासत में है।
प्रिवेंटिव कस्टडी में होने पर ही छूट (Elections Jail Vote Rules)
हालाँकि, इसकी उपधारा के तहत, यह कुछ व्यक्ति पर लागू नहीं होगा यदि वह कुछ समय के लिए प्रिवेंटिव कस्टडी में है। संविधान के अनुच्छेद 326 में मताधिकार की अयोग्यता के लिए कुछ आधार मौजूद हैं। ये अयोग्यताएँ मानसिक अस्वस्थता, गैर-निवास और अपराध/भ्रष्ट/अवैध आचरण से संबंधित हैं। प्रवीण कुमार चौधरी बनाम भारत निर्वाचन आयोग [डब्ल्यू.पी. (सी) 2336/2019], मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने फिर से पुष्टि की कि कैदियों को वोट देने का अधिकार नहीं है।