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Chandra Shekhar Azad जब 11 वीं बेंत पर चंद्रशेखर आजाद ने लगाया था यह नारा, क्या था वह…?

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Khabarwala 24 News New Delhi:Chandra Shekhar Azad चंद्रशेखर आज़ाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे जाबांज क्रांतिकारियों में से एक थे। उनका असली नाम चंद्रशेखर तिवारी था, लेकिन उन्होंने खुद को “आजाद” घोषित किया और अंग्रेजों के हाथों कभी जीवित न पकड़े जाने की कसम खाई। आज 27 फरवरी को उनकी पुण्यतिथि है। ऐसे में उनके जीवन से जुड़ी एक गर्वित कर देने वाली कहानी से हम आपको रूबरू कराने जा रहे है। 1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के दौरान, चंद्रशेखर आजाद सिर्फ 15 साल के थे, जब उन्हें ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। अदालत में जब जज ने उनसे नाम पूछा, तो उन्होंने क्या जवाब दिया ये भी आपको बताएंगे।

15 बेंतों की सुनाई थी सजा, जानकर कांप जाएगी रूह (Chandra Shekhar Azad)

बता दें कि जब चंद्रशेखर आजाद को अंग्रेजों की पुलिस ने गिरफ्तार किया तो उन्हें जज के सामने लाया गया. जब जज ने उनसे उनका नाम पूछा तो उन्होंने जोशीले अंदाज में जो जवाब दिया वो जानकर आपकी छाती भी गर्व से चौड़ी हो जाएगी। चंद्रशेखर ने कहा…नाम-“आजाद” पिता का नाम- “स्वतंत्रता” पता- “जेलखाना” यह सुनकर जज गुस्से से लाल हो गया और चंद्रशेखर को 15 बेंतों की सजा सुनाई गई।

हर बेंत पर गूंजा था वंदेमातरम् (Chandra Shekhar Azad)

सजा देने के लिए चंद्रशेखर को मैदान में बुलाया गया। जैसे ही पहला बेंत पड़ा, उन्होंने जोर से नारा लगाया “वंदे मातरम!” फिर दूसरा, तीसरा, चौथा… हर बेंत पर वह “वंदे मातरम!” चिल्लाते रहे। जब 10वां बेंत पड़ा, तो वह अब भी अडिग खड़े थे. लेकिन जैसे ही 11वां बेंत पड़ा, उन्होंने पूरी ताकत से चिल्लाकर कहा “भारत माता की जय” और फिर हर बेंत पर यही नारे दोहराते गए। ब्रिटिश अफसरों को उम्मीद थी कि इतनी मार खाने के बाद वह रो पड़ेंगे या दया की भीख मांगेंगे, लेकिन उनका हौसला देखकर सभी दंग रह गए।

क्या होती थी बेंतों की सजा? (Chandra Shekhar Azad)

अंग्रेजों के जमाने में जब कोई भारतीय स्वतंत्रता सेनानी पकड़ा जाता था, तो उसे कड़ी सजा दी जाती थी। उनमें से एक थी बेंतों से मारने की सजा। इस सजा में एक मोटी छड़ी (जिसे बेंत या कोड़ा भी कहते हैं) से कैदी की पीठ या जांघों पर जोरदार प्रहार किया जाता था। इस सजा का उद्देश्य न केवल शारीरिक दर्द देना था, बल्कि मनोबल तोड़ना भी होता था, ताकि वह दोबारा क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा न ले।

अल्फ्रेड पार्क में अपनी जिद पूरी कर दे दिए प्राण (Chandra Shekhar Azad)

इस घटना के बाद चंद्रशेखर को देशभर में प्रसिद्धि मिली और वे आजाद के नाम से पहचाने जाने लगे। उन्होंने कसम खाई कि अब कभी अंग्रेजों के हाथों जिंदा नहीं पकड़े जाएंगे और आखिरकार 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में उन्होंने खुद को गोली मारकर इस कसम को पूरा किया।

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