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माइक्रोप्लास्टिक के ज्यादा संपर्क में आने से बढ़ता है अल्जाइमर का रिस्क: अध्ययन

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नई दिल्ली, 11 सितंबर (khabarwala24)। चूहों पर किए गए एक अध्ययन के अनुसार, सूक्ष्म और नैनो प्लास्टिक के संपर्क में आने से अल्जाइमर का खतरा बढ़ सकता है।

पर्यावरण में मौजूद सूक्ष्म और नैनो प्लास्टिक पीने के पानी या फिर भोजन से ही नहीं बल्कि सांस लेते वक्त हवा के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश करते हैं।

रोड आइलैंड विश्वविद्यालय के फार्मेसी कॉलेज के शोधकर्ताओं के इस अध्ययन से पता चला है कि ये प्लास्टिक कण मस्तिष्क सहित शरीर की सभी प्रणालियों में प्रवेश कर जमा हो जाते हैं और कॉग्निटिव डिक्लाइन (ब्रेन का ठीक से काम न करना जिससे गतिविधियों में तारतम्य स्थापित नहीं होता) और यहां तक कि अल्जाइमर रोग का कारण बन सकते हैं, खासकर उन लोगों में जो जेनेटिक रिस्क फैक्टर्स (आनुवंशिक कारक) कैरी करते हैं।

यह शोध एक पूर्व अध्ययन के बाद किया गया है जिसमें दिखाया गया था कि कैसे सूक्ष्म प्लास्टिक शरीर की सभी प्रणालियों में प्रवेश कर उनकी क्रियाशीलता को बाधित करते हैं। ये ब्रेन पर असर डालते हैं और अल्जाइमर का कारण बन सकते हैं।

एनवायरनमेंटल रिसर्च कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित इस नए अध्ययन में उन चूहों का परीक्षण किया गया, जिन्हें प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले जीन एपीओई4 (अल्जाइमर का एक मजबूत संकेतक है) को शामिल करने के लिए आनुवंशिक रूप से संशोधित किया गया था, जिससे लोगों में इस रोग की आशंका उन लोगों की तुलना में 3.5 गुना अधिक होती है, जिनमें माता-पिता से संतानों में स्थानांतरित होने वाले जीन का एपीओई3 प्रकार होता है।

विश्वविद्यालय के फार्मेसी सहायक प्रोफेसर जैमे रॉस ने कहा, इंसानों की तरह, इस बात की कोई गारंटी नहीं कि इन चूहों की सोचने-समझने की शक्ति में कोई बदलाव देखने को मिलेगा। आपके जुड़वां बच्चे भी अलग-अलग तरीके से रिएक्ट कर सकते हैं, जैसे दोनों में एपीओई4 हो, एक कॉग्नेटिव्ली हेल्दी होगा यानी उसके सोचने-समझने और सीखने की क्षमता अच्छी हो सकती है, तो दूसरे को अल्जाइमर रोग हो सकता है।

रॉस ने आगे कहा, इससे पता चलता है कि हमारी जीवनशैली में कुछ दोष है या पर्यावरण में कुछ गड़बड़ी है। हम अल्जाइमर से जुड़े कुछ परिवर्तनीय कारकों जैसे आहार, व्यायाम, विटामिन, और खास तौर पर माइक्रोप्लास्टिक जैसे एनवायर्नमेंटल टॉक्सिन्स (पर्यावरणीय विषाक्त पदार्थ) का अध्ययन कर रहे हैं। अब सवाल है कि अगर आप एपीओई4 से ग्रस्त हैं, और आपके शरीर में माइक्रोप्लास्टिक प्रचुर मात्रा में है, तो क्या यह अल्जाइमर को बढ़ावा देगा?

इसके बाद टीम ने चूहों की कॉग्नेटिव एबिलिटी (संज्ञानात्मक क्षमता) की जांच के लिए कई परीक्षण किए।

उनके अनुसार, अल्जाइमर पीड़ित पुरुष ज्यादा उदासीन रहते हैं; अपनी फिक्र कम करते हैं। वहीं महिलाओं की याददाश्त पर असर पड़ता है। इसलिए याददाश्त और उदासीनता का संबंध बिल्कुल स्पष्ट है: जब आप उन जानवरों को सूक्ष्म-नैनोप्लास्टिक के संपर्क में लाते हैं, तो देखिए, उनका व्यवहार कैसे बदलता है। उनमें भी ये भेद लिंग आधारित होता है, ठीक वैसे ही जैसे अल्जाइमर पीड़ितों में हम देखते हैं।

टीम ने कहा कि ये नतीजे बेहद चिंताजनक हैं। सूक्ष्म और नैनोप्लास्टिक के पर्यावरण और मानव जीवन पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव का वर्णन करते हैं।

केआर/

Source : IANS

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