Khabarwala 24 News New Delhi : Supreme Court एक महिला को अपने पति के साथ रहने के आदेश का पालन नहीं करने के बाद भी उस स्थिति में पति से भरण-पोषण का अधिकार दिया जा सकता है जब उसके पास साथ रहने से इनकार करने का वैध कारण हो।
सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि इस संबंध में कोई सख्त नियम नहीं हो सकता और यह हमेशा मामले की परिस्थितियों पर निर्भर होना चाहिए। सीजेआई संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि व्यक्तिगत मामले के तथ्यों पर निर्भर करेगा और उपलब्ध सामग्री तथा सबूतों के आधार पर यह तय करना होगा कि क्या साथ रहने के आदेश के बावजूद पत्नी के पास पति के साथ रहने से इनकार करने का वैध और पर्याप्त कारण है।
कोई सख्त नियम नहीं हो सकता : SC (Supreme Court)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘इस संबंध में कोई सख्त नियम नहीं हो सकता और यह निश्चित रूप से प्रत्येक विशेष मामले में प्राप्त होने वाले विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर होना चाहिए।’ पीठ ने यह आधिकारिक फैसला झारखंड के एक अलग रह रहे दंपति के मामले में दिया जिनका विवाह एक मई 2014 को हुआ था, लेकिन अगस्त 2015 में अलग हो गए। पति ने दाम्पत्य अधिकारों की बहाली के लिए रांची में पारिवारिक अदालत का रुख किया और दावा किया कि पत्नी ने 21 अगस्त 2015 को ससुराल छोड़ दिया और उसे वापस लाने के बार-बार प्रयासों के बावजूद वह वापस नहीं लौटी।
गुजारा भत्ता प्रदान करने का निर्देश (Supreme Court)
उसकी पत्नी ने पारिवारिक अदालत के समक्ष अपने लिखित आवेदन में आरोप लगाया कि उसके पति ने उसे प्रताड़ित किया और वाहन खरीदने के लिए पांच लाख के दहेज की मांग की। पारिवारिक अदालत ने 23 मार्च, 2022 को यह कहते हुए वैवाहिक अधिकारों की बहाली का फैसला सुनाया कि पति उसके साथ रहना चाहता है।
हालांकि, पत्नी ने आदेश का पालन नहीं किया और परिवार अदालत में भरण-पोषण के लिए याचिका दायर की। पारिवारिक अदालत के 15 फरवरी, 2022 के आदेश को बरकरार रखा जाता है और पति को अलग रह रही पत्नी को 10,000 रुपये का गुजारा भत्ता प्रदान करने का निर्देश दिया जाता है।
पत्नी के पक्ष में फैसला सुनाया गया (Supreme Court)
पारिवारिक अदालत ने पति को आदेश दिया कि वह अलग रह रही पत्नी को प्रति माह 10,000 रुपये का गुजारा भत्ता प्रदान करे। बाद में, पति ने इस आदेश को झारखंड उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी जिसमें कहा गया कि उसकी पत्नी वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश के बावजूद ससुराल नहीं लौटी और उसने अपील के माध्यम से चुनौती देने का विकल्प नहीं चुना।
उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि पत्नी भरण-पोषण की हकदार नहीं है। आदेश से व्यथित होकर पत्नी ने शीर्ष अदालत के समक्ष आदेश को चुनौती दी, जिसने उसके पक्ष में फैसला सुनाया।
बकाया तीन अगस्त, 2019 से देय (Supreme Court)
शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय को फैसले और निष्कर्षों को इतना अनुचित महत्व नहीं देना चाहिए था। इसने कहा कि इस तथ्य पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि महिला को घर में शौचालय का उपयोग करने या ससुराल में खाना पकाने के लिए उचित सुविधाओं का लाभ उठाने की अनुमति नहीं थी जो उससे दुर्व्यवहार का संकेत है।
पीठ ने कहा, ‘तदनुसार, रांची में झारखंड उच्च न्यायालय द्वारा पारित 4 अगस्त, 2023 के फैसले को रद्द करते हुए अपील स्वीकार की जाती है।’ ‘यह आवेदन दाखिल करने की तारीख,तीन अगस्त, 2019 से देय होगा। भरण-पोषण का बकाया तीन समान किस्तों में भुगतान किया जाएगा।’