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Dev Deepawali 2024 देव दीपावली पर पूजा-पाठ और वैदिक मंत्रों का जाप करने से मिलता है दोगुना फल, जानिए पूजन विधि और शुभ मुहूर्त

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Khabarwala 24 News New Delhi : Dev Deepawali 2024 सनातन धर्म में देव दीवाली का बेहद महत्व है। यह पर्व हिंदू माह की कार्तिक पूर्णिमा में मनाया जाता है। यह दीवाली के 15वें दिन पड़ता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने इस दिन त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था।

ऐसा कहा जाता है कि इस दिन पूजा-पाठ और वैदिक मंत्रों का जाप करने से दोगुना फल की प्राप्ति होती है। यह त्योहार शिव के पुत्र भगवान कार्तिक की जयंती का भी प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवता गण स्वर्ग से पृथ्वी लोक पर आते हैं और अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करते हैं, तो चलिए देव दीवाली की तिथि और पूजा विधि से लेकर सबकुछ जानते हैं।

शुभ मुहूर्त (Dev Deepawali 2024)

हिंदू पंचांग अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा की तिथि 15 नवंबर को सुबह 06 बजकर 19 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 16 नवंबर को देर रात 02 बजकर 58 मिनट पर होगा। सनातन धर्म में उदया तिथि का महत्व है। इसलिए 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा व देव दीपावली मनाई जाएगी। इस दिन 2 घंटे 37 मिनट तक का शुभ मुहूर्त रहेगा। प्रदोष काल में शाम 5 बजकर 10 मिनट से शाम 7 बजकर 47 मिनट तक देव दीपावली मनाई जाएगी।

पूजा विधि (Dev Deepawali 2024)

कार्तिक पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। इस दिन गंगा नदी या किसी पवित्र नदी में स्नान करना शुभ माना जाता है। यदि किसी वजह से आप पवित्र नदी में स्नान के लिए नहीं जा पा रहे हैं, तो घर के पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान करें। सुबह के समय मिट्टी के दीपक में घी या तिल का तेल डालकर दीपदान करें।

भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें। पूजा के समय भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें। घर के कोने-कोने में दीपक जलाएं। शाम के समय भी किसी मंदिर में दीपदान करें। इस दिन श्री विष्णु सहस्रनाम, विष्णु चालीसा का पाठ करें। आरती से पूजा को समाप्त करें। पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमा याचना करें।

पूजन मंत्र (Dev Deepawali 2024)

ऊं नमो नारायण नम:
ऊँ श्रीं ल्कीं महालक्ष्मी महालक्ष्मी एह्येहि सर्व सौभाग्यं देहि मे स्वाहा।।
ऊँ ह्रीं श्री क्रीं क्लीं श्री लक्ष्मी मम गृहे धन पूरये, धन पूरये, चिंताएं दूरये-दूरये स्वाहा:।।
ॐ त्र्यम्बेकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धूनान् मृत्योवर्मुक्षीय मामृतात्।।

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