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Shikhar Dham Nagalwadi अनोखा है भीलटदेव मंदिर, सूर्यास्त के बाद यहां नहीं रूकते किन्नर

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Khabarwala 24 News New Delhi Shikhar Dham Nagalwadi : नागलवाड़ी मध्य प्रदेश महाराष्ट्र सीमा पर स्थित एक अत्यंत दर्शनीय और सुंदर स्थान है। यह सतपुड़ा हिल रेंज में स्थित है। पहाड़ी की चोटी पर एक बहुत प्रसिद्ध भीलट देव मंदिर है, जो तीर्थयात्रियों के लिए मुख्य आकर्षण है।

यहां नागपंचमी पर बड़ा मेला लगता है। भारत की धरती पर आए दिन चमत्कारिक घटनाएं होती रहती हैं। इन्हीं में से एक का गवाह है बड़वानी में नागलवाड़ी का भीलटदेव मंदिर। सदियों पुरानी यह ऐसी कहानी है, जिसे सुनकर रोंगटे खड़े हो जाएंगे। मान्यता है कि यहां मानता मानने वालों की हर कामना पूरी होती है। खास तौर पर निःसंतान दंपती की गोद हरी हो जाती है। एक किन्नर का भी इससे जुड़ा किस्सा है। और इस क्षेत्र में सूर्यास्त के बाद किन्नर नहीं रूकते…

सदियों पुरानी है यह कहानी

संतान नहीं होने से दुखी रहता था परिवार (Shikhar Dham Nagalwadi)

शिखरधाम मंदिर के पुजारी बताते हैं कि कहानी के अनुसार यहां एक संत भीलटदेव का जन्म हुआ था, इनकी पूजा यहां नागदेवता के रूप में की जाती है। स्थानीय लोगों के अनुसार नागदेवता के रूप में पूजे जाने वाले भीलटदेव का जन्म 1220 में मध्यप्रदेश के हरदा जिले के ग्राम रोलगांव में हुआ था।

इनके पिता का नाम राणा रेलण एवं ममतामई माता का नाम मेदाबाई था। इनके माता-पिता सच्चे शिव भक्त थे। निमाड़ के प्रसिद्ध संत सिंगाजी की तरह ही वह भी गवली परिवार में गो-पालन कर जीवन यापन करते थे। उनका परिवार सुख-समृद्ध होते हुए भी संतान नहीं होने से दुखी रहता था।

भोलेनाथ के आशीर्वाद से बेटे का जन्म (Shikhar Dham Nagalwadi)

आस्थावान दंपती की भक्ति साधना से प्रसन्न होकर एक दिन शिवजी ने दर्शन देकर वरदान मांगने को कहा। निःसंतान राणा दंपती की आंखें भर आईं। उन्होंने भगवान से कहा कि आप सर्व ज्ञाता हो, हमारे निःसंतान होने के कलंक को हे गंगाधर, मां गंगा की धार से धो दीजिए, तब शिवजी बोले.. हे भक्त युगल आपकी किस्मत में संतान का सुख तो नहीं है, लेकिन मेरे वरदान के फलस्वरूप एक तेजस्वी बालक का जन्म होगा, लेकिन वह आपके पास तब तक रहेगा, जब तक मैं चाहूंगा। इस दंपती की मनोकामना पूरी हुई और उनके घर भीलटदेव का अवतरण हुआ।

शिव-पार्वती बाबा भीलटदेव को ले गए (Shikhar Dham Nagalwadi)

दोनों खुशी-खुशी अपने बच्चे के साथ दिनरात बिताने लगे। एक दिन शिवजी साधु के वेश में परीक्षा लेने आ गए। कहानियों के मुताबिक शिव-पार्वती ने इनसे वचन लिया था कि वो रोज दूध-दही मांगने आएंगे। अगर नहीं पहचाना तो बच्चे को अपने साथ ले जाएंगे।

एक दिन वे भूल गए और शिव-पार्वती बाबा भीलटदेव को उठा ले गए। बदले में पालने में शिवजी अपने गले का नाग रख गए। इसके बाद मां-बाप ने अपनी गलती मानी। इस पर शिव-पार्वती ने कहा कि पालने में जो नाग छोड़ा है, उसे ही अपना बेटा समझें। इस तरह बाबा को लोग नागदेवता के रूप में पूजते हैं।

किन्नर को हुई संतान, रात को नहीं रुकते

भीलटदेव आने वाले निःसंतान दंपती की मनोकामना पूरी हो जाती है। एक बार एक किन्नर ने भी भीलटदेव की परीक्षा लेने का विचार किया। 200 साल पहले एक किन्नर ने सोचा कि यहां महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए आती हैं। सभी की मनोकामना पूरी हो जाती है।

उसने भी भीलट देव से प्रार्थना की। भीलटदेव के आशीर्वाद से किन्नर को भी गर्भ ठहर गया। लेकिन, बाद में उसकी मौत हो गई। मान्यता है कि उस घटना के बाद कोई भी किन्नर इस क्षेत्र में रात नहीं बिताता। वे सूर्यास्त के बाद क्षेत्र से बाहर चले जाते हैं। यहां के सेगांव रोड पर उसी किन्नर की समाधि शिला लगी हुई है।

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