Friday, December 6, 2024

Ritupurna Neog शिक्षा की ताकत और माता-पिता के साथ ने नहीं पड़ने दिया कमजोर, आज गांव-गांव में फ्री लाइब्रेरी बना रहीं ऋतूपूर्णा नेओग

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Khabarwala 24 News New Delhi : Ritupurna Neog असम की ऋतूपूर्णा का बचपन किसी आम बच्चे जैसा ही सुखद था लेकिन किशोर अवस्था आते-आते उन्हें अपने लड़कियों जैसे हाव-भाव के लिए स्कूल में कई ताने सुनने पड़ते थे। बचपन में लाइब्रेरी के पीछे छुपने वाली ऋतूपूर्णा नेओग को किताबों से ऐसा प्यार हुआ कि आज वह अपनी संस्था Akam Foundation के जरिए उन गांवों में फ्री लाइब्रेरी बना रही हैं, जहां के बच्चों को आज भी किताबों और रोटी के बीच में किसी एक काे चुनना पड़ रहा है ताकि शिक्षा के दम पर भेद-भाव को मिटाया जा सके।

कभी कमजोर नहीं पड़ने दिया (Ritupurna Neog)

खुद ऋतूपूर्णा नेओग मानती हैं कि स्कूल में लोग मुझे बहुत ज्यादा परेशान करते थे क्योंकि मेरा हावभाव लड़की जैसा था। उस समय मुझे छुपने के लिए एक जगह चाहिए थी और मेरे लिए वह जगह लाइब्रेरी थी। यह दौर मुश्किल जरूर था लेकिन शिक्षा की ताकत और उनके माता-पिता के साथ ने उन्हें कभी कमजोर नहीं पड़ने दिया। वह शिक्षा की ताकत तभी समझ गई थीं, शिक्षा की इस ताकत को हर एक इंसान तक पहुंचाने के लिए उन्होंने गांव में फ्री लाइब्रेरी बनाने का सपना देखा।

गांव-गांव फ्री लाइब्रेरी बना रहीं (Ritupurna Neog)

अपने उसी सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने सोशल वर्क के क्षेत्र में पढ़ाई की। बाद में ऋतूपूर्णा ने असम की अलग-अलग सोशल वर्क सोसाइटी के साथ काम करना शुरू किया। नौकरी करते वक्त भी वह अपने लाइब्रेरी खोलने के सपने को कभी नहीं भूली। वह अपनी सैलरी से हर महीने कुछ किताबें खरीदती थीं। साल 2020 में उन्होंने अपने गांव में लाइब्रेरी बनाने का फैसला किया लेकिन तभी देश में लॉकडाउन लग गया।

किताबों से ला रही हैंं बदलाव (Ritupurna Neog)

ऋतूपूर्णा ने उस समय सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके ऑनलाइन स्टोरीटेलिंग प्रोग्राम शुरू किया। कोरोना के समय असमिया भाषा में उनकी कहानियां सुनना लोगों को बेहद पसंद आया और उनका प्रोग्राम भी काफी हिट रहा। जिसके बाद उन्होंने अपनी 600 किताबों और अपने माता-पिता की मदद से गांव में पहली फ्री लाइब्रेरी Kitape Katha Koi की शुरुआत कर दी।

रीटेलिंग प्रोग्राम करती रहती हैं (Ritupurna Neog)

महज 600 किताबों से शुरू हुई उस लाइब्रेरी में आज 1200 से अधिक किताबें हैं जो उनके जैसे दूसरे किताब प्रेमियों की मदद से मुमकिन हो पाया है। आज वह असम के दो गांवों में दो फ्री लाइब्रेरी के तहत 200 से अधिक बच्चों की मदद कर रही हैं। इतना ही नहीं वह समय-समय अलग गांवों में जाकर स्टोरीटेलिंग प्रोग्राम भी करती रहती हैं।

सब मुमकिन करने की ताकत (Ritupurna Neog)

साथ ही वह Gender Discrimination विषय में जागरूकता लाने के लिए भी पिछले दो सालों में 40 से अधिक यूनिवर्सिटीज और इंस्टिट्यूट्स में जाकर 10 हजार से ज़्यादा लोगों तक पहुंची हैं। ये सबकुछ मुमकिन करने की ताकत ऋतू को आज भी किताबों से मिलती है। शिक्षा के दम पर ऋतू एक ऐसा समाज गढ़ने की कोशिश में लगी हैं जहां न ऊँच- नीच हो, न भेद-भाव! ऋतू की फ्री लाइब्रेरी तक किताबें पहुंचाने के लिए आप उनसे सोशल मीडिया पर सम्पर्क कर सकते हैं।

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