Khabarwala 24 News New Delhi : Dead Bodies Banned in Kashi भारत में हर तीर्थ स्थान की अपनी अलग पहचान, महत्व और मान्यता होती है। लोग अपने कष्टों, पापों या रोगों से छुटकारा पाने के लिए विशेष तीर्थ स्थलों का रुख करते हैं। इन्हीं में से एक है काशी, जिसे मोक्षदायिनी नगरी कहा जाता है। मान्यता है कि काशी में मृत्यु प्राप्त करने वाले को मोक्ष मिलता है और वह सीधे बैकुंठ की यात्रा करता है। यही कारण है कि लोग जीवन के अंतिम समय में काशी आकर बस जाते हैं।
पांच तरह की लाशों को जलाने की अनुमति नहीं (Dead Bodies Banned in Kashi)
काशी के श्मशान घाटों की बात करें तो यहां चिता कभी बुझती नहीं है। मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट जैसे स्थानों पर दिन-रात शवों का अंतिम संस्कार होता रहता है। लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि काशी में पांच तरह की लाशों को जलाने की अनुमति नहीं होती।
सोशल मीडिया पर रहस्य से उठाया गया पर्दा (Dead Bodies Banned in Kashi)
काशी में साधु-संतों, 12 साल से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं, सर्पदंश से मरे लोगों और कुष्ठ या चर्म रोग से पीड़ित मृतकों का दाह संस्कार नहीं किया जाता। हाल ही में सोशल मीडिया पर इस रहस्य से पर्दा उठाया गया।
साधु-संतों को जल या थल समाधि दी जाती है (Dead Bodies Banned in Kashi)
साधु-संतों को जलाने की बजाय उन्हें जल समाधि या थल समाधि दी जाती है। बच्चों को भगवान का स्वरूप मानकर उनकी बॉडी को जलाना अशुभ माना जाता है। गर्भवती महिलाओं के शरीर में पल रहे भ्रूण की वजह से चिता पर पेट फटने की संभावना होती है, जिससे दृश्य अशोभनीय हो सकता है।
धार्मिक परंपराओं और आस्थाओं पर आधारित (Dead Bodies Banned in Kashi)
सांप के काटे व्यक्ति की लाश को भी नहीं जलाया जाता क्योंकि मान्यता है कि उनके शरीर में कुछ समय तक प्राण रहते हैं और तांत्रिक उन्हें जीवित कर सकता है। वहीं, कुष्ठ रोगियों की बॉडी जलाने से रोग फैलने की आशंका मानी जाती है। ये सभी मान्यताएं स्थानीय धार्मिक परंपराओं और आस्थाओं पर आधारित हैं।