Khabarwala 24 News Hapur: Hapur हापुड़ के तीन साहसी पर्वतारोहियों संजय त्यागी (देवनंदिनी), हरेंद्र त्यागी (आवास विकास), और धर्मेंद्र त्यागी नंबरदार (कैली) ने विश्व की सबसे ऊंची पर्वत चोटी सागरमाथा (माउंट Everest) के आधार शिविर (एवरेस्ट बेस कैंप, 5364 मीटर) और काला पत्थर पीक (5644 मीटर) को फतह कर इतिहास रच दिया। विशेष रूप से, ये तीनों पर्वतारोही 50 वर्ष से अधिक आयु के हैं, जो उनकी इस असाधारण उपलब्धि को और भी प्रेरणादायक बनाता है। इस सफलता ने हापुड़ के पर्वतारोहण इतिहास में एक नया मील का पत्थर स्थापित किया है।
3 अप्रैल को शुरू की यात्रा
इन तीनों ने 3 अप्रैल 2025 को हापुड़ से अपनी इस चुनौतीपूर्ण यात्रा की शुरुआत की। उन्होंने 10 अप्रैल को नागार्जुन पीक (5089 मीटर), 12 अप्रैल को काला पत्थर (5644 मीटर), और 13 अप्रैल को एवरेस्ट बेस कैंप (5364 मीटर) को सफलतापूर्वक फतह किया। एवरेस्ट (Everest)बेस कैंप वैश्विक पर्वतारोहियों के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, जहां वे माउंट एवरेस्ट (8849 मीटर) की चढ़ाई से पहले शारीरिक अनुकूलन (एक्लेमेटाइजेशन) के लिए रुकते हैं। काठमांडू से शुरू होने वाला यह रूट अत्यंत दुर्गम है, और पर्वतारोही कई चरणों में यहां दो महीने तक रहकर ऊंचाई के अनुकूल ढलते हैं।
दृढ़ता, सावधानीपूर्वक तैयारी, और अटूट संकल्प
संजय, हरेंद्र, और धर्मेंद्र की इस उपलब्धि में उनकी दृढ़ता, सावधानीपूर्वक तैयारी, और अटूट संकल्प स्पष्ट झलकता है। काला पत्थर, जो गोरक्षेप के पास पुमोरी की दक्षिणी रिज पर स्थित है, माउंट एवरेस्ट का सबसे नजदीकी और स्पष्ट दृश्य प्रदान करता है। यहां से एवरेस्ट के साथ-साथ ल्होत्से, नुप्त्से, और अन्य हिमालयी चोटियों का मनोरम दृश्य दिखाई देता है। इस चढ़ाई को सुबह-सुबह पूरा किया गया, जब सूर्योदय के समय पहाड़ों पर पड़ने वाली सुनहरी किरणें एक जादुई अनुभव देती हैं।
चुनौती को पार किया
एवरेस्ट (Everest) बेस कैंप तक पहुंचने के लिए पर्वतारोहियों को काठमांडू से लुक्ला तक उड़ान, फिर फाकदिंग, नामचे बाजार, तेंगबोचे, दिंगबोचे, लोबुचे, और गोरक्षेप जैसे पड़ावों से गुजरना पड़ता है। यह यात्रा न केवल शारीरिक रूप से कठिन है, बल्कि ऊंचाई के कारण होने वाली बीमारी (एल्टिट्यूड सिकनेस) का खतरा भी रहता है। फिर भी, हापुड़ के इन बेटों ने अपनी मेहनत और लगन से इस चुनौती को पार किया।
आने वाली पीढ़ी को साहसिक गतिविधियों के लिए प्रोत्साहित करेगी
इस उपलब्धि ने हापुड़ में गर्व और उत्साह की लहर पैदा कर दी है। इन पर्वतारोहियों ने न केवल अपने शहर का नाम रोशन किया, बल्कि यह भी साबित किया कि उम्र महज एक संख्या है, और दृढ़ संकल्प के आगे कोई बाधा नहीं टिकती। उनकी यह यात्रा युवाओं और बुजुर्गों, दोनों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। हापुड़वासियों का मानना है कि संजय, हरेंद्र, और धर्मेंद्र की यह सफलता आने वाली पीढ़ियों को पर्वतारोहण और साहसिक गतिविधियों के लिए प्रोत्साहित करेगी।


