Khabarwala 24 News New Delhi : Unheard story of Mahabharata महाभारत में कर्ण का जीवन संघर्षों से भरा रहा। कर्ण की विशेषता सिर्फ उनकी बहादुरी और संघर्ष में ही नहीं, बल्कि उन्होंने दान, त्याग और महानता की मिसाल भी पेश की। एक सूत पुत्र के रूप में उन्हें हमेशा समाज में अपमान और तिरस्कार का सामना करना पड़ा लेकिन कर्ण ने कभी भी हार नहीं मानी और अपनी मेहनत, साहस और प्रतिभा से अपनी पहचान बनाई। उनके जीवन से हमें ये सीखने को मिलता है कि किसी भी परिस्थिति में हमें अपने उद्देश्य को नहीं छोड़ना चाहिए और सही रास्ते पर ही चलते रहना चाहिए।
सूत पुत्र से समाज में अपमान (Unheard story of Mahabharata)
कर्ण कभी भी ये नहीं चाहते थे कि उनका जन्म उनकी पहचान बने, लेकिन समाज ने उन्हें हमेशा यही याद दिलाया कि वह एक सूत पुत्र हैं। इसके बावजूद कर्ण ने कभी अपनी स्थिति को अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। उनका जीवन एक प्रेरणा था कि कोई भी व्यक्ति किसी भी स्थिति में सफलता प्राप्त कर सकता है।
अर्जुन और कर्ण के बीच युद्ध (Unheard story of Mahabharata)
महाभारत के युद्ध के दौरान जब अर्जुन और कर्ण आमने-सामने आए तो कर्ण ने अपनी वीरता का परिचय दिया। कर्ण ने केवल एक बाण से अर्जुन का रथ हिला दिया था। हालांकि, अर्जुन के रथ पर श्री कृष्ण और हनुमान के ध्वज की उपस्थिति के कारण उन्हें अतिरिक्त शक्ति प्राप्त थी।
सक्षम और शक्तिशाली योद्धा (Unheard story of Mahabharata)
फिर भी कर्ण का ये बाण इस बात का प्रमाण रहा कि वो कितने सक्षम और शक्तिशाली योद्धा थे। जब द्रौपदी का चीरहरण हुआ तो कर्ण ने उसका विरोध करने की बजाय उसका अपमान किया। जो कि कर्ण की सबसे बड़ी गलती साबित हुई, जिसने महाभारत के युद्ध को और भी अनिवार्य बना दिया।
परशुराम से धनुर्विद्या सीखी (Unheard story of Mahabharata)
कर्ण ने गुरु परशुराम से धनुर्विद्या सीखी थी लेकिन जब गुरु परशुराम को पता चला कि कर्ण एक सूत पुत्र हैं और क्षत्रिय नहीं हैं तो उन्होंने कर्ण को श्राप दिया कि वे सबसे महत्वपूर्ण समय पर ज्ञान भूल जाएंगे। जब मृत्यु का समय आया तो कर्ण ने सोने का दांत निकालकर श्री कृष्ण को दे दिया। ये त्याग और बलिदान का प्रतीक था।
अंतिम संस्कार का महत्व? (Unheard story of Mahabharata)
कर्ण ने मृत्यु के समय श्री कृष्ण से तीन वरदान मांगे थे। पहला, भविष्य में किसी के साथ अन्याय ना हो। दूसरा, श्री कृष्ण उनके राज्य में जन्म लें और तीसरा उनका अंतिम संस्कार कोई ऐसा करे जो पूरी तरह पापमुक्त हो लेकिन कर्ण के अंतिम संस्कार के लिए कोई पापमुक्त व्यक्ति नहीं मिला। श्री कृष्ण ने अपनी हथेली पर कर्ण का अंतिम संस्कार किया, जिससे उनकी महानता और उनका महत्व साबित हुआ।