गाजा के समर्थन को लेकर पाकिस्तान की सेना पर खड़े हुए सवाल

-Advertisement-
-Advertisement-
Join whatsapp channel Join Now
Join Telegram Group Join Now
-Advertisement-

नई दिल्ली, 14 सितंबर (khabarwala24)। गाजा में मानवीय संकट को एक साल से ज्यादा हो गया है। इस बीच पाकिस्तान की सेना पर फिर से आलोचना हो रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान केवल दिखावटी तरीके से फिलिस्तीन के समर्थन की बातें करता है, लेकिन असली नीति में कोई बदलाव नहीं लाता।

इजराइली आक्रमण की निंदा करने और “मुस्लिम एकता” का आह्वान करने वाले कई सार्वजनिक बयानों के बावजूद, पर्यवेक्षकों का तर्क है कि ये संकेत केवल प्रतीकात्मक हैं।

‘मिडिल ईस्ट मॉनिटर’ द्वारा प्रकाशित एक टिप्पणी के अनुसार, आमतौर पर ये बयान तब दिए जाते हैं जब गाजा में बच्चों की मौत की तस्वीरें दुनिया भर में चर्चा में होती हैं या जब संघर्षविराम की बातचीत चल रही होती है। लेख में कहा गया है कि ऐसे मौकों पर, पाकिस्तानी अधिकारी, विशेष रूप से रक्षा मंत्रालय के अधिकारी, समर्थन की गंभीर घोषणाएं करते हैं।

हालांकि, आलोचकों का तर्क है कि ये बयान वास्तविक कूटनीतिक रुख दिखाने के बजाए राजनीतिक नाटक अधिक होते हैं। विश्लेषणात्मक लेख के अनुसार, पाकिस्तान की सेना के असली मक़सद लंबे समय से अलग रहे हैं और दशकों से रावलपिंडी के जनरल मुस्लिम हितों के रक्षक के रूप में नहीं, बल्कि रणनीतिक कर्ता के रूप में काम करते रहे हैं। उन्होंने अक्सर अपने फायदे के लिए विदेशी ताकतों का साथ दिया है। इसमें अरब देशों में विद्रोहों को दबाने के लिए सेना भेजने से लेकर अमेरिकी सैन्य अभियानों का समर्थन करने तक के उदाहरण शामिल हैं।

रिपोर्ट बताती है कि फ़िलिस्तीनी मुद्दे को एक बयानबाजी के हथियार के रूप में देखा जाता है। जब जनता में भावनाएं तेज होती हैं, तो इसे उठाया जाता है, लेकिन असली कदम कभी नहीं उठाए जाते। सेना इसे “राष्ट्रीय हित” और “रणनीतिक संतुलन” कहकर सही ठहराती है, जबकि असल मकसद अपनी शक्ति और फायदों को सुरक्षित करना होता है।

एक उल्लेखनीय तुलना में, विश्लेषक पाकिस्तान की सेना की तुलना इजरायल से भी करते हैं। वे कहते हैं कि पाकिस्तानी जनरल्स इजरायल की उस व्यवस्था से प्रभावित हैं, जहां सेना सरकार पर हावी रहती है और संकट के माहौल में अपनी ताकत बढ़ाती है। हालांकि पाकिस्तान के पास इजरायल जैसी क्षमता और वैश्विक प्रभाव नहीं है।

यह आलोचना पाकिस्तान से आगे तक फैली हुई है। कई मुस्लिम देशों की सरकारें भी गाजा के दर्द पर खामोश रही हैं। खाड़ी देश इजरायल से व्यापार करते हैं। तुर्की और मिस्र, मुखर निंदा के बावजूद, व्यापार और सीमा प्रवर्तन जारी रखते हैं।

आखिर में निष्कर्ष यही निकलता है कि असली एकजुटता सरकारों के भाषणों में नहीं, बल्कि जमीनी स्तर की सक्रियता में निहित है। लेखक, कार्यकर्ता और आम नागरिक ही असली प्रतिरोध की आवाज हैं। गाजा की पीड़ा जारी है, और पाकिस्तान की सत्ता के दावों और हकीकत के बीच का फर्क जनता में निराशा बढ़ा रहा है।

Source : IANS

डिस्क्लेमर: यह न्यूज़ ऑटो फ़ीड्स द्वारा स्वतः प्रकाशित हुई खबर है। इस न्यूज़ में Khabarwala24.com टीम के द्वारा किसी भी तरह का कोई बदलाव या परिवर्तन (एडिटिंग) नहीं किया गया है| इस न्यूज की एवं न्यूज में उपयोग में ली गई सामग्रियों की सम्पूर्ण जवाबदारी केवल और केवल न्यूज़ एजेंसी की है एवं इस न्यूज में दी गई जानकारी का उपयोग करने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों (वकील / इंजीनियर / ज्योतिष / वास्तुशास्त्री / डॉक्टर / न्यूज़ एजेंसी / अन्य विषय एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें। अतः संबंधित खबर एवं उपयोग में लिए गए टेक्स्ट मैटर, फोटो, विडियो एवं ऑडिओ को लेकर Khabarwala24.com न्यूज पोर्टल की कोई भी जिम्मेदारी नहीं है।

Breaking News in Hindi और Latest News in Hindi सबसे पहले मिलेगी आपको सिर्फ Khabarwala24 पर. Hindi News और India News in Hindi  से जुड़े अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें Facebook पर ज्वॉइन करें, Twitter पर फॉलो करें और Youtube Channel सब्सक्राइब करे।

spot_img
spot_img
spot_img
spot_img
spot_img
spot_img
spot_img
spot_img
spot_img
spot_img
spot_img
spot_img
spot_img
spot_img

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

-Advertisement-

Related News

-Advertisement-

Breaking News

-Advertisement-