पाक प्रायोजित आतंकवाद : सिर्फ जान ही नहीं, आर्थिक विकास को भी चुकानी पड़ रही है कीमत

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नई दिल्ली, 14 सितंबर (khabarwala24)। पाकिस्तान प्रायोजित सीमा पार आतंकवाद से न केवल भारत में लोग अपना बहुमूल्य जीवन गंवा रहे हैं, बल्कि इस कारण देश पर आर्थिक बोझ भी बढ़ रहा है। सीमा सुरक्षा पर भारी खर्च करना पड़ता है और पर्यटन उद्योग को भी गहरी चोट पहुंचती है, जिसे पाकिस्तान लगातार निशाना बनाता रहा है।

सीमा सुरक्षा के लिए बड़े पैमाने पर धन की आवश्यकता होती है। न्यूजवायर में प्रकाशित अंकित कुमार के एक लेख के अनुसार, भारत सरकार ने सीमा ढांचे और प्रबंधन (बीआईएम) योजना के तहत वर्ष 2021 से 2026 तक बाड़बंदी, फ्लड लाइट, सड़कें और तकनीकी इंतज़ामों पर लगभग 13,020 करोड़ रुपये अलग रखे हैं।

लेख के अनुसार, केवल बाड़ लगाना ही काफी नहीं है। आतंकी घटनाओं के कारण पर्यटन और सेवाओं पर बुरा असर पड़ता है, बीमा प्रीमियम बढ़ जाते हैं और लंबे समय तक केंद्रीय बलों व सेना की तैनाती करनी पड़ती है। इससे विकास पर खर्च करने वाले धन की दिशा बदल जाती है।

भारत बार-बार यह मुद्दा उठाता रहा है कि पाकिस्तान आतंकवाद को पनाह देता है। संयुक्त राष्ट्र ने लश्कर-ए-तैयबा और मसूद अज़हर जैसे आतंकियों को सूचीबद्ध किया है। अमेरिका और अन्य देशों की रिपोर्टें तथा अदालतों के मामलों ने भी पाकिस्तान की भूमिका को उजागर किया है।

हाल ही में, प्रतिबंधित आतंकवादी समूहों के साथ पाकिस्तान के आधिकारिक संबंधों का खुलासा तब हुआ जब पाकिस्तानी सेना के शीर्ष अधिकारियों और वरिष्ठ असैन्य अधिकारियों को ऑपरेशन सिंदूर में मारे गए लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के एक आतंकवादी की कब्र पर खुलेआम श्रद्धांजलि अर्पित करते देखा गया।

14 अगस्त को पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस पर, लाहौर डिवीजन के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) मेजर जनरल राव इमरान सरताज, संघीय मंत्री मलिक राशिद अहमद खान, लाहौर के मुरीदके में मुदासिर अहमद की कब्र पर गए। यह वही आतंकी था जो 1999 के आईसी-814 अपहरण और 2019 पुलवामा हमले से जुड़ा हुआ था।

इन घटनाओं ने साफ दिखा दिया कि पाकिस्तान आतंकवाद विरोधी लड़ाई की बातें तो करता है, पर वास्तव में आतंकी संगठनों और उनके सरगनाओं का सम्मान करता है। यह पाकिस्तान के दोहरे रवैये को उजागर करता है।

भारत ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से पाकिस्तान को मिलने वाली वित्तीय मदद का भी विरोध किया है। भारत का कहना है कि यह मदद सीधे-सीधे आतंकवाद को बढ़ावा देने में इस्तेमाल की जा सकती है। हाल ही में आईएमएफ द्वारा पाकिस्तान को 1.3 अरब डॉलर की नई मदद देने पर हुई वोटिंग में भारत ने भाग नहीं लिया।

भारत ने इस चिंता को रेखांकित किया था कि आईएमएफ जैसे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से प्राप्त होने वाले धन का दुरुपयोग सैन्य और राज्य-प्रायोजित सीमा-पार आतंकवादी उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है, जो कई सदस्य देशों के लिए चिंता का विषय था, लेकिन आईएमएफ की प्रतिक्रिया तकनीकी औपचारिकताओं से घिरी हुई है। भारत का मानना है कि वैश्विक वित्तीय संस्थाओं को केवल तकनीकी नियमों पर ही नहीं, बल्कि नैतिक मूल्यों को भी ध्यान में रखना चाहिए, ताकि आतंकवाद को सहारा देने वाले देशों को वित्तीय मदद न मिल सके।

Source : IANS

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