Khabarwala24 News Simbhaoli (Hapur) : Hapur सिंभावली क्षेत्र के कस्बा बक्सर में मुहर्रम कि तैयारी जोरों पर शुरू हो गई है। मुहर्रम पर्व पर ज्यारत बनाने के लिए टीम मुम्बई से बक्सर पहुंची है। यानी मुहर्रम इस्लाम के नए साल हिजरी सन् का शुरुआती महीना है। मुहर्रम बकरीद के पर्व के 20 दिनों के बाद मनाया जाता है। इस बार 17 जुलाई को आशूरा मुहर्रम मनाया जा रहा है। इस्लाम धर्म के लोगों के लिए यह महीना बहुत अहम होता है, क्योंकि इसी महीने में हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी।
Hapur मुहर्रम व हुसैन कमेटी अध्यक्ष अफ़सार अंसारी ने जानकारी देते हुए बताया है कि मुहर्रम गम और मातम का महीना है, जिसे इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग मनाते हैं। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, मुहर्रम इस्लाम धर्म का पहला महीना होता है। यानी मुहर्रम इस्लाम के नए साल या हिजरी सन का शुरुआती महीना है। इस माह में इमाम हुसैन की शहादत हुई थी। हजरत इमाम हुसैन इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब के छोटे नवासे थे। उनकी शहादत की याद में मुहर्रम के महीने के दसवें दिन शिया समुदाय के लोग मातम के तौर पर मनाते हैं, जिसे आशूरा भी कहा जाता है।
चलिए जानते हैं मुस्लिम धर्म के दूसरे सबसे पवित्र माह मुहर्रम के इतिहास, महत्व, हजरत इमाम हुसैन और ताजियादारी के बारे में ।
क्यों मनाया जाता है मुहर्रम ? (Hapur)
इस्लाम धर्म की मान्यता के मुताबिक, हजरत इमाम हुसैन अपने 72 साथियों के साथ मोहर्रम माह के 10 वें दिन कर्बला के मैदान में शहीद हो गए थे। उनकी शहादत और कुर्बानी के तौर पर इस दिन को याद किया जाता है। कहा जाता है कि इराक में यजी़द नाम का ज़ालिम बादशाह था, जो इंसानियत का दुश्मन था। यजी़द को अल्लाह पर विश्वास नहीं था। यजी़द चाहता था कि हजरत इमाम हुसैन भी उनके खेमे में शामिल हो जाएं। हालांकि इमाम साहब को यह मंजूर न था। उन्होंने बादशाह यजी़द के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया। इस जंग में वह अपने बेटे, घरवाले और अन्य साथियों के साथ शहीद हो गए।
कौन थे हजरत इमाम हुसैन ? (Hapur)
हजरत इमाम हुसैन पैगंबर ए इस्लाम हजरत मुहम्मद साहब के नवासे थे। इमाम हुसैन के वालिद यानी पिता का नाम ‘शेरे-खुदा’ हज़रत अली था, जो कि पैगंबर साहब के दामाद थे। इमाम हुसैन की मां बीबी फातिमा थीं। हजरत अली मुसलमानों के धार्मिक-सामाजिक और राजनीतिक मुखिया थे। उन्हें खलीफा बनाया गया था। कहा जाता है कि हज़रत अली के निधन के बाद लोग इमाम हुसैन को खलीफा बनाना चाहते थे लेकिन हज़रत अमीर मुआविया ने खिलाफत पर कब्जा कर लिया। मुआविया के बाद उनके बेटे यजी़द ने खिलाफत अपना ली। यजीद क्रूर शासक बना। उसे इमाम हुसैन का डर था। इंसानियत को बचाने के लिए यजी़द के खिलाफ इमाम हुसैन के कर्बला की जंग लड़ी और शहीद हो गए।
कैसे और कब मनाया जाता है मुहर्रम ? (Hapur)
मुहर्रम के 10 वें दिन यानी आशूरा के दिन ताजियादारी की जाती है। इमाम हुसैन की इराक में दरगाह है, जिसकी हुबहू नकल कर ताजिया बनाए जाते हैं। शिया उलेमा के मुताबिक, मोहर्रम का चांद निकलने की पहली तारीख को ताजि़या रखी जाती है। इस दिन लोग इमाम हुसैन की शहादत की याद में ताजि़या और जुलूस निकालते हैं। हालांकि ताजि़या निकालने की परंपरा सिर्फ शिया समुदाय में ही होती है लेकिन अन्य कुछ समुदाय भी मुहर्रम मनाते है।