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तलवारबाजी : आत्मरक्षा के लिए इजाद की गई कला, जो ओलंपिक खेल बन गई

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नई दिल्ली, 12 नवंबर (khabarwala24)। तलवारबाजी एक प्राचीन कला है। कभी मनुष्य ने तलवार का निर्माण आत्मरक्षा और शिकार के लिए किया था। युद्ध के मैदानों पर तलवार के दम पर योद्धाओं ने अपना पराक्रम दिखाया। महाभारत और रामायण में भी तलवार के उपयोग का उल्लेख है।

एक खेल के रूप में तलवारबाजी, यानी ‘फेंसिंग’ का सबसे पहला प्रमाण मिस्र में लगभग 1200 ईसा पूर्व के एक अभिलेख से मिलता है, जिसमें तलवारबाजी का अभ्यास करते दिखाया गया है। प्राचीन बेबीलोन, यूनान, फार और रोम में अलग-अलग डिजाइन की तलवारों का इस्तेमाल होता था।

बंदूक और बारूद के दौर में तलवारों का इस्तेमाल कम होता गया, लेकिन तलवारबाजी की एक समृद्ध विरासत रही है। 14वीं और 15वीं शताब्दी में जर्मनी और इटली में यह एक खेल के रूप में विकसित होने लगी थी।

जर्मन फेंसिंग मास्टर्स तलवारबाजी के लिए एक संस्था थी, जिसमें साल 1478 में फ्रैंकफर्ट की मार्क्सब्रूडर सबसे चर्चित रही।

17 और 18वीं शताब्दी में ‘फॉयल’ का आविष्कार हुआ, जिसमें टारगेट एरिया के साथ कुछ नियम बनाए गए। तलवारबाज इस खेल के दौरान तारों से बुना एक मास्क भी पहनता था।

साल 1880 में पहली औपचारिक तलवारबाजी प्रतियोगिता शुरू हुई। इसके 16 साल बाद यानी साल 1896 में एमेच्योर जिमनास्टिक एंड फेंसिंग एसोसिएशन ने खेल के लिए आधिकारिक नियम बनाए। इसी साल एथेंस ओलंपिक में पहली बार तलवारबाजी के खेल को जगह मिली।

उस समय तलवारबाजी के तीन इवेंट थे, लेकिन अब इनकी संख्या बढ़कर 12 हो गई है, जिनमें पुरुषों और महिलाओं की व्यक्तिगत और प्रत्येक डिसिप्लिन के लिए टीम प्रतियोगिताएं भी शामिल हैं।

तलवारबाजी तीन प्रकार (फॉयल, साबरे और एपी) की होती है। ‘फॉयल’ में हल्के थ्रस्ट-टाइप ब्लेड का प्रयोग होता है, जबकि ‘एपी’ में भारी थ्रस्ट-टाइप ब्लेड का इस्तेमाल किया जाता है। ‘साबरे’ में एक लाइट कटिंग और थ्रस्ट-टाइप हथियार का इस्तेमाल किया जाता है।

तलवारबाजी के मुकाबले में प्वाइंट हासिल करने के लिए खिलाड़ी को अपने प्रतिद्वंद्वी के शरीर के टारगेट एरिया पर अपनी तलवार को टच करना होता है। यह मुकाबले 14 मीटर लंबी और 1.5 से 2 मीटर चौड़ी पिस्ट (मैट) पर खेले जाते हैं।

प्रत्येक टच पर एक अंक दिया जाता है। प्रत्येक मुकाबले को तीन मिनट के तीन राउंड में खेला जाता है। प्रत्येक राउंड के बीच एक मिनट का ब्रेक होता है। अगर कोई तलवारबाज पिस्ट के अंतिम छोर से बाहर पैर रख दे, तो भी प्रतिद्वंद्वी को अंक दिया जाता है।

इंडिविजुअल मैच में सबसे पहले 15 अंकों तक पहुंचने वाले तलवारबाज या तीसरे राउंड की समाप्ति तक सबसे आगे रहने वाले खिलाड़ी को विजेता माना जाता है।

भवानी देवी तलवारबाजी में ओलंपिक कोटा हासिल करने वाली पहली भारतीय हैं। भले ही वे ओलंपिक पदक हासिल नहीं कर सकीं, लेकिन उन्होंने इस खेल में युवाओं को जरूर प्रेरित किया है।

तलवारबाजी में भारत का भविष्य उज्ज्वल नजर आता है। हाल के वर्षों में भारतीय खिलाड़ियों ने इस खेल में उल्लेखनीय प्रगति की है। भारत में अब फेंसिंग एकेडमी, प्रशिक्षण सुविधाओं और सरकारी सहायता के जरिए इस खेल को बढ़ावा दिया जा रहा है। उम्मीद की जा रही है कि आने वाले वर्षों में भारत एशियन गेम्स और ओलंपिक में पदक जीतने की मजबूत दावेदारी पेश कर सकता है।

Source : IANS

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