रोइंग : पानी पर ताकत और तालमेल का खेल, जिसने ओलंपिक में बनाई खास पहचान

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नई दिल्ली, 25 नवंबर (khabarwala24)। करीब 8 हजार ईसा पूर्व लोग लकड़ी के लट्ठों को आपस में बांधकर उसे इस तरह तैयार करते थे कि उसमें खड़े होकर नदी को पार कर सकें। इससे न सिर्फ उन लोगों को नदी पार करने में मदद मिलती थी, बल्कि वे इसकी सहायता से मछलियों को भी पकड़ते थे।

धीरे-धीरे लकड़ी के लट्ठों को काट-छांटकर उसे नाव का आकार दिया गया। उस दौरान किसी ने सोचा नहीं था कि एक दिन यही नाव ओलंपिक में पानी पर ताकत और तालमेल का खेल बनेगी।

साल 1829 में ऑक्सफोर्ड-कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी बोट रेस का आयोजन हुआ। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी को आठ पतवारों वाली नाव के साथ एक मैच में हिस्सा लेने की चुनौती दी थी। इस पहली रेस में ऑक्सफोर्ड ने जीत हासिल की थी।

19वीं शताब्दी तक यूरोप में रोइंग ने लोकप्रियता हासिल कर ली। 1900 पेरिस ओलंपिक में इस खेल को पहली बार शामिल किया गया, और तब से लेकर आज तक प्रत्येक ओलंपिक में इस खेल ने अपनी छाप छोड़ी है। 1976 मॉन्ट्रियल ओलंपिक में पहली बार महिलाओं की स्पर्धा को शामिल किया गया और फिर 1996 अटलांटा ओलंपिक में लाइटवेट स्पर्धाओं की शुरुआत हुई।

रोइंग रेस के दो प्रकार होते हैं- स्कलिंग और स्वीप ओअर। स्कलिंग में दो पतवारों का प्रयोग होता है, जबकि स्वीप में नाविक एक पतवार का उपयोग करता है।

नाव चलाने वाले एथलीट व्यक्तिगत रूप से या फिर 2, 4 और 8 की टीमों में प्रतिस्पर्धा करते हैं। डबल स्कल्स एथलीट दोनों हाथों में एक-एक पतवार पकड़ते हैं, जबकि स्वीप रोइंग एथलीट दोनों हाथों से एक पतवार को पकड़ते हैं।

8 व्यक्तियों की टीम में एक मुख्य चालक होता है, जो अन्य सदस्यों को निर्देश देता है। उसे ‘कॉक्सवेन’ कहा जाता है। उनके अलावा, अन्य सदस्य एक फुट पेडल के साथ पतवार को नियंत्रित करते हैं।

प्रत्येक 10 से 12.4 मीटर की दूरी पर पानी की गहराई के साथ एक खास चीज को बांधकर रास्तों को चिन्हित किया जाता है। अगर किसी टीम या एथलीट से गलत शुरुआत हो जाए, तो उसे चेतावनी दी जाती है। अगर वह एथलीट या टीम गलती दोहराती है, तो उसे अयोग्य करार दिया जाता है। नाव का अगला भाग फिनिश लाइन कब पार करता है, यह जीत को तय करता है।

भारतीय रोइंग ने पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह प्रगति की है, उसे देखते हुए ओलंपिक में भारत का भविष्य पहले से अधिक उज्ज्वल माना जा सकता है। भारतीय रोइंग में प्रतिभा का दायरा बढ़ा है। अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारतीय रोअर्स तेजी से उभरकर सामने आए हैं। यह भविष्य की टीम के लिए मजबूत आधार है। उम्मीद की जा सकती है कि भारत जल्द इस खेल में भी ओलंपिक पदक हासिल करेगा।

Source : IANS

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