नई दिल्ली, 3 सितंबर (khabarwala24)। किरण मोरे भारत के पूर्व विकेटकीपर-बल्लेबाज हैं, जिन्होंने अपनी विकेटकीपिंग क्षमताओं के अलावा बल्ले से भी योगदान देते हुए निचले क्रम में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं। विकेट के पीछे तेजतर्रार स्टंपिंग के लिए मशहूर किरण मोरे उस दौर के खिलाड़ी थे जब विकेटकीपिंग बहुत क्लासिक और तकनीकी कला थी। उस दौर के विशेषज्ञ टेस्ट विकेटकीपर भले ही शानदार बल्लेबाज नहीं थे, लेकिन क्रिकेट में बड़ा नाम थे। मोरे ने भी भले ही ज्यादा रन नहीं बनाए, लेकिन वह एक सक्षम बल्लेबाज भी थे। उन्होंने अक्सर दबाव की स्थिति से भारत को बाहर निकाला।
4 सितंबर 1962 को बड़ौदा में जन्मे किरण मोरे ने 1980 में प्रथम श्रेणी क्रिकेट में डेब्यू किया था। घरेलू क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन के बाद किरण मोरे ने दिसंबर 1984 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डेब्यू किया। मोरे जल्द ही खुद को एक विश्वसनीय विकेटकीपर के रूप में स्थापित कर चुके थे। विकेट के पीछे चपलता ने उन्हें टीम का अहम सदस्य बना दिया था। हालांकि, मोरे बार-बार अपील करते हुए विपक्षी टीम को भी खूब परेशान कर देते थे।
साल 1986 में उन्हें टेस्ट टीम में भी मौका मिल गया। किरण मोरे ने अपनी पहली ही टेस्ट सीरीज में 16 कैच लपकते हुए इतिहास रच दिया। यह इंग्लैंड के खिलाफ किसी भारतीय विकेटकीपर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था।
मोरे ने पहले टेस्ट में पांच विकेट झटके, अगले मुकाबले में उन्होंने छह कैच लपके। तीसरे मुकाबले में पांच बल्लेबाजों का कैच लिया। इस सीरीज के बाद से मोरे बतौर विकेटकीपर टेस्ट फॉर्मेट में टीम इंडिया के लिए पहली पसंद बन चुके थे।
किरण मोरे वर्ल्ड कप 1992 में टीम इंडिया का हिस्सा थे। 4 मार्च को भारत-पाकिस्तान के बीच हाई वोल्टेज मैच खेला गया, जिसमें किरण मोरे की ओर से बार-बार अपील करने के चलते पाकिस्तानी बल्लेबाज जावेद मियांदाद इतना झल्ला गए कि उन्होंने पिच पर ही कूदना शुरू कर दिया था। मियांदाद इस पारी में 40 रन बना सके और भारत ने मुकाबला 43 रन से अपने नाम कर लिया।
किरण मोरे को निचले क्रम पर बल्लेबाजी के लिए भेजा जाता था। ऐसे कई मौके रहे, जब उन्होंने टीम को संकट से निकाला।
14 अक्टूबर 1987 को रिलायंस वर्ल्ड कप में किरण मोरे ने 26 गेंदों में पांच चौकों की मदद से 42 रन की नाबाद पारी खेली थी। मोरे उस वक्त नौवें नंबर पर बल्लेबाजी के लिए उतरे, जब तक टीम इंडिया महज 170 के स्कोर तक अपने सात विकेट गंवा चुकी थी। यहां से मोरे ने कप्तान कपिल देव के साथ आठवें विकेट के लिए 82 रन की अटूट साझेदारी करते हुए टीम को 252 रन तक पहुंचाया। इस पारी में नवजोत सिंह सिद्धू (75) और कप्तान कपिल देव (72) ने भी अर्धशतक जमाए थे।
लक्ष्य का पीछा करने उतरी न्यूजीलैंड की टीम निर्धारित ओवरों में आठ विकेट खोकर 236 रन ही बना सकी और भारत ने मुकाबला 16 रन से जीत लिया।
पाकिस्तान के खिलाफ नवंबर 1989 में किरण मोरे ने नौवें नंबर पर बल्लेबाजी करते हुए 96 गेंदों में नाबाद 58 रन बनाए थे। उनकी इस पारी ने भारत को 262 रन तक पहुंचाया। पहली पारी में 409 रन बनाने के बाद पाकिस्तान ने अगली इनिंग 305/5 पर घोषित करते हुए भारत को जीत के लिए विशाल लक्ष्य दिया। टीम इंडिया ने अगली पारी में तीन विकेट खोकर 303 रन बनाए और मुकाबला ड्रॉ करवाया। भले ही टीम इंडिया ने दूसरी पारी में शानदार बल्लेबाजी की, लेकिन मोरे ने पहली पारी में उस वक्त टीम को संभाला, जब इस पारी की सख्त दरकार थी। मोरे उस पारी में सर्वाधिक रन बनाने वाले भारतीय थे।
अगस्त 1990 में मोरे ने ओवल टेस्ट में मेजबान इंग्लैंड के खिलाफ नौवें नंबर पर बल्लेबाजी करते हुए 61 रन बनाए थे। रवि शास्त्री और कपिल देव ने शतक जड़ते हुए भारत को 606/9 के स्कोर तक पहुंचाया।
न्यूजीलैंड की टीम पहली पारी में 340 रन पर सिमट गई और मेजबान टीम को फॉलोऑन खेलने के लिए मजबूर होना पड़ा। हालांकि, दूसरी पारी में इंग्लैंड ने शानदार वापसी करते हुए मुकाबला ड्रॉ करवा लिया। इस तरह की पारियां खेलते हुए मोरे कुछ पारियों में भारत के संकटमोचक साबित हुए।
किरण मोरे ने अपने टेस्ट करियर में कुल 49 मुकाबले खेले, जिसकी 64 पारियों में 25.70 की औसत के साथ 1,285 रन बनाए। इस दौरान मोरे ने सात अर्धशतक जमाए। विकेटकीपर के तौर पर मोरे ने 110 कैच लपकने के साथ 20 स्टंपिंग भी की।
मोरे के वनडे फॉर्मेट में प्रदर्शन को देखा जाए, तो उन्होंने 94 मुकाबलों में 13.09 की औसत के साथ 563 रन बनाए। बतौर विकेटकीपर उन्होंने 63 कैच लपकने के अलावा 27 खिलाड़ियों को स्टंप आउट किया।
फर्स्ट क्लास करियर में 151 मुकाबले खेलने वाले मोरे ने 31.08 की औसत के साथ 5,223 रन बनाए, जिसमें सात शतक और 29 अर्धशतक शामिल थे। उन्होंने 303 कैच लपकने के अलावा 63 स्टंपिंग भी कीं।
क्रिकेट से संन्यास के बाद मोरे ने कोच और चयन समिति अध्यक्ष के रूप में भी योगदान दिया। वह बतौर कमेंटेटर भी नजर आए। कई क्रिकेट अकादमियों से भी जुड़ते हुए, उन्होंने युवा क्रिकेटरों का मार्गदर्शन किया। क्रिकेट में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें साल 1993 में अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था।
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Source : IANS
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