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बड़ी चट्टान काटकर बनाया गया भगवान शिव का कैलाश मंदिर, नहीं होती किसी भी देवी-देवता की पूजा

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दिल्ली, 18 नवंबर (khabarwala24)। सृष्टि का संचालन करने वाले भगवान शिव विश्व के हर हिस्से में अलग-अलग रूपों में व्याप्त हैं, लेकिन महाराष्ट्र के एलोरा में भगवान शिव का ऐसा प्राचीन मंदिर है, जो भारत की प्राचीन वास्तुकला, महाभारत और रामायण की कथाओं और भगवान शिव के हर रूप को खास तरीके से दिखाता है।

हम बात कर रहे हैं महाराष्ट्र के एलोरा में बने कैलाश मंदिर की, जिसे एक ही बड़ी चट्टान को काटकर बनाया गया है।

महाराष्ट्र के एलोरा में बना कैलाश मंदिर देखने में बहुत बड़ा मंदिर है। आमतौर पर मंदिर जमीन के ऊपर बने होते हैं, लेकिन कैलाश मंदिर बड़ी चट्टान को काटकर जमीन के लेवल से नीचे बनाया गया है और ऊपर से नीचे की तरफ बनाया गया है। बताया जाता है कि मंदिर को बनाने में 100 साल से ज्यादा का समय लगा और कारीगरों ने बिना किसी सीमेंट या सरिया के सिर्फ औजारों की सहायता से इस अद्भुत मंदिर का निर्माण किया है।

ये भी कहा जाता है कि मंदिर के निर्माण कार्य शुरू होने से लेकर खत्म होने तक कई राजाओं ने मंदिर बनाने में योगदान दिया, यही वजह है कि मंदिर की वास्तुकला और नक्काशी अलग-अलग परंपरा और कला को दर्शाती है। मंदिर की दीवारों पर महाभारत और रामायण की कथाओं और पात्रों को बारीकी से निखारा गया है। इसके साथ अन्य शिव रूप और हिंदू देवी-देवताओं के रूपों की सुंदर नक्काशी भी की गई है। दीवारों पर भगवान शिव के रौद्र, उग्र, शांत और प्रचंड नृत्य करती प्रतिमाएं भी मिल जाएंगी।

मंदिर में घूमने आए पर्यटकों को आज भी मंदिर के कोने-कोने में भगवान शिव के होने का अहसास होता है।

कैलाश मंदिर इसलिए भी खास है क्योंकि औरंगजेब ने मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया था, लेकिन 1000 से ज्यादा सैनिक भी मंदिर का बाल भी बांका नहीं कर सके। 3 साल तक लगातार औरंगजेब के भेजे सैनिक मंदिर को तोड़ने की कोशिश करते रहे, लेकिन सिर्फ 5 फीसदी हिस्से को ही नुकसान पहुंचा पाए। आज भी मेन मंदिर अपनी भव्यता के साथ बरकरार है।

बताया जाता है कि मंदिर को बनाने में 7000 से ज्यादा मजदूर लगे थे और मालखेड स्थित राष्ट्रकूट वंश के नरेश कृष्ण ने मंदिर का निर्माण कार्य शुरू कराया था। 100 साल बाद जाकर कहीं मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हुआ। इस मंदिर में आज भी भगवान शिव की पूजा नहीं होती है और पहले भी मंदिर में कभी पूजा-पाठ होने के प्रमाण नहीं मिले हैं। पर्यटक मंदिर की अनोखे बनाव और वास्तुकला को देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं। यूनेस्को भी मंदिर को ‘विश्व विरासत स्थल’ घोषित कर चुका है।

Source : IANS

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