महाराष्ट्र, 19 दिसंबर (khabarwala24)। देशभर में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं, जिनकी अलग पौराणिक कथा और मान्यता है। महाराष्ट्र में भगवान शिव का एक ऐसा प्राचीन ज्योतिर्लिंग है, जो भक्त की सच्ची आस्था और भगवान शिव के प्यार और आशीर्वाद का प्रतीक है।
हम बात कर रहे हैं महाराष्ट्र में स्थापित घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की, जिसका नाम भी एक भक्त की सच्ची श्रद्धा से प्रेरित होकर रखा गया है।
महाराष्ट्र में दौलताबाद से 20 किमी दूर वेरुल में घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर स्थापित है, जो 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इस मंदिर को कुसुमेश्वर और गृश्मेश्वर मंदिरों के नाम से भी जाना जाता है, और मंदिर का निर्माण अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था, जिन्होंने वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर का भी पुनर्निर्माण भी कराया था। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव का बड़ा सा शिवलिंग है और उनके साथ मां पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा भी विराजमान है। भक्तों को भगवान शिव पूरे परिवार के साथ दर्शन देते हैं।
मंदिर की पौराणिक कथा एक सच्चे भक्त की भक्ति से जुड़ी है, जिसकी भक्ति से खुश होकर भगवान शंकर ने स्वयं दर्शन दिए थे। प्रचलित कथा की मानें तो देवगिरी नाम के एक पहाड़ पर ज्ञानी ब्राह्मण पत्नी सुदेहा के साथ रहता था। दोनों भगवान शिव के बड़े भक्त थे, लेकिन संतानहीन थे। संतान पाने के लिए सुदेहा ने अपने पति की दूसरी शादी अपनी ही बहन घुश्मा से करा दी। बड़ी बहन के कहने पर घुश्मा रोजाना एक मिट्टी का शिवलिंग बनाती और पानी में प्रवाहित कर देती। घुश्मा पूरी तरह से शिव की भक्ति में लीन हो गई थी और इसके परिणामस्वरूप उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
अपनी बहन की गोद में बच्चे को देखकर अब सुदेहा अंदर ही अंदर कुढ़ने लगी और बदला लेने की चाह में अपनी बहन के बेटे को ही मौत के घाट उतार दिया। जब इस घटना के बारे में घुश्मा और परिवार को पता चला तो घुश्मा के चेहरे पर शून्य का भाव था। वह रोज की तरह शिवलिंग को जल विसर्जित करने चली, लेकिन तभी उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें स्वयं दर्शन दिए और बेटे की मौत का कारण भी बताया।
घुश्मा ने भगवान शिव से अपनी बहन को क्षमा करने के लिए कहा। भक्त की इतनी उदारता को देखकर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और वरदान मांगने के लिए कहा। घुश्मा ने महादेव से प्रार्थना की कि वे यहीं भक्तों की रक्षा करने और दंपतियों को दिव्य संतान देने के लिए विराजमान हो जाएं। इसी वजह से मंदिर का नाम घृष्णेश्वर पड़ा। जिन दंपतियों को संतान नहीं होती है, वे दूर-दूर से बाबा के दर्शन के लिए जरूर आते हैं।
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