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Friday, June 13, 2025

कश्मीर का तुलबुल प्रोजेक्ट फिर से शुरू करने पर क्या होगा असर? पाकिस्तान को शुरु से रही है आपत्ति

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Khabarwala 24 News New Delhi : एक बार फिर झेलम नदी चर्चा में है। वजह है तुलबुल प्रोजेक्ट यानी Tulbul Navigation Project. जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस परियोजना को फिर से शुरू करने की बात कही है। इससे कश्मीरियों को सीधा फायदा मिलेगा लेकिन इस बात ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया है। पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने इसे भावनाएं भड़काने वाला कदम बताया है। वहीं केंद्र सरकार पहले ही सिंधु जल संधि को स्थगित कर चुकी है। अब सवाल ये उठता है कि आखिर तुलबुल प्रोजेक्ट है क्या, पाकिस्तान इससे क्यों घबरा रहा है और इसे फिर से शुरू करने पर क्या असर होगा?

क्या है तुलबुल प्रोजेक्ट? 

तुलबुल प्रोजेक्ट जम्मू-कश्मीर में झेलम नदी पर स्थित है। इसका निर्माण वुलर झील के पास किया जाना था। यह एक नेविगेशन लॉक-कम-कंट्रोल स्ट्रक्चर यानी पानी का नियंत्रण करने वाला बांध है। इस परियोजना की शुरुआत 1984 में हुई थी। इसका मकसद था: झेलम नदी के प्रवाह को नियंत्रित करना। सर्दियों में नौकायन (शिपिंग) को संभव बनाना। खेती के लिए सिंचाई व्यवस्था करना। बिजली पैदा करना और कश्मीर में 100 किलोमीटर लंबा जल मार्ग (वाटरवे) बनाना लेकिन 1987 में पाकिस्तान ने इसका विरोध किया और कहा कि यह सिंधु जल समझौते का उल्लंघन है। इसके बाद यह परियोजना रोक दी गई।

पाक को क्या है आपत्ति?

पाकिस्तान को डर है कि यदि तुलबुल प्रोजेक्ट पूरा हो गया तो भारत झेलम नदी का बहाव अपने हिसाब से नियंत्रित कर पाएगा। झेलम, भारत से निकलकर पाकिस्तान में बहती है, इसलिए इस नदी पर नियंत्रण भारत को रणनीतिक बढ़त देगा। सिंधु जल संधि के तहत चिनाब, झेलम और सिंधु नदी पर पाकिस्तान का अधिकार है, जबकि ब्यास, सतलुज और रावी नदी पर भारत को पूरा अधिकार है भारत को केवल इतना ही अधिकार है कि वह झेलम, चिनाब और सिंधु नदियों का आंशिक प्रयोग कर सकता है। पाकिस्तान का दावा है कि अगर भारत तुलबुल बांध बना लेता है तो झेलम का पानी धीरे-धीरे छोड़कर वह पाकिस्तान में सूखा पैदा कर सकता है।

भारत के लिए यह प्रोजेक्ट? 

भारत के लिए यह परियोजना कई मायनों में अहम है। इससे जम्मू-कश्मीर में सिंचाई सुविधाएं बेहतर होंगी। कश्मीर को सस्ता जल परिवहन मार्ग मिलेगा। नदी पर नियंत्रण से बाढ़ नियंत्रण और बिजली उत्पादन आसान होगा। पाकिस्तान पर रणनीतिक दबाव बनाया जा सकेगा। वहीं उमर अब्दुल्ला का कहना है कि अगर पाकिस्तान आतंकवाद को बंद नहीं करता, तो हम अपने संसाधनों का इस्तेमाल करने से पीछे क्यों हटें? दूसरी ओर केंद्र सरकार का रुख स्पष्ट है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही कह चुके हैं “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते”। यानि अगर पाकिस्तान आतंकवाद बंद नहीं करता तो सिंधु जल समझौते का पालन भी नहीं होगा।

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