Monday, June 9, 2025

What Is Caste Census आखिरी बार कब हुई थी और अब क्यों जरूरी है जाति जनगणना? जानिए हर सवाल का जवाब

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Khabarwala 24 News New Delhi : What Is Caste Census केंद्र सरकार ने जातीय जनगणना कराने का एलान किया है। पिछले कुछ सालों के दौरान विपक्षी दल जातीय जनगणना की मांग को चुनावी मुद्दा बनाने का प्रयास कर रहे थे।

भारत में ऐतिहासिक रूप से जातियां सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करती रही हैं। राष्ट्रीय जनगणना के दौरान लोगों की जातीय पहचान के आधार पर व्यवस्थित तरीके से आंकड़े जुटाए जाते हैं, यही जातीय जनगणना है। ऐसे में जातियों के आंकड़ों से पता चल सकता है कि कोई खास जाति किन क्षेत्रों में है, उनकी सामाजिक- आर्थिक स्थिति क्या है और विभिन्न जातियों का प्रतिनिधित्व कितना है। आइये जानते हैं इतिहास और वर्तमान में इसके महत्व के बारे में…

जातीय जनगणना का इतिहास (What Is Caste Census)

भारत में पहली बार 1881 में जनगणना हुई थी। उस समय भारत की आबादी 25.38 करोड़ थी। तब से ही हर 10 साल पर जनगणना हो रही है।1881 से 1931 तक जातीय जनगणना हुई। 1941 में जातीय आंकड़े जुटाए गए लेकिन इनको सार्वजनिक नहीं किया गया।

सामाजिक न्याय और कल्याण (What Is Caste Census)

जातियों की संख्या 46 लाख से अधिक हो चुकी है। केंद्र सरकार के अनुसार, 1931 में 4,147 जातियां थी। वहीं महाराष्ट्र में 4.10 लाख जातियों की संख्या हो चुकी है जोकि 1931 में 494 थी। इस जानकारी का इस्तेमाल सामाजिक न्याय और उनके कल्याण के लिए नीतियां बनाने में किया जा सकता है।

1951 में हुई पहली जनगणना (What Is Caste Census)

आजादी के बाद 1951 में पहली जनगणना हुई थी। उस समय सरकार ने तय किया कि सिर्फ अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के आंकड़े ही जुटाए जाएंगे। सरकार का मानना था कि जातियों की गणना से समाज विभाजित होगा और राष्ट्रीय एकता कमजोर होगी।

1961 में सर्वेक्षण की अनुमति (What Is Caste Census)

1991 में राज्यों को ओबीसी की अपनी सूची तैयार करने के लिए सर्वेक्षण की अनुमति दी गई। ओबीसी जातियों को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए विशेष उपायों की मांग को ध्यान में रख कर यह अनुमति दी गई थी। हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर जातीय जनगणना नहीं की गई।

2011 में हुई जातीय जनगणना (What Is Caste Census)

2011 में यूपीए सरकार ने समाजिक, आर्थिक और जातीय जनगणना के लिए करीब 4.5 हजार करोड़ रुपये खर्च किए थे लेकिन जातियों के आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए। 1931 के बाद जातियों के आंकड़े जुटाने का यह पहला प्रयास था। 2014 में कर्नाटक की सिद्धरमैया सरकार ने जातीय सर्वेक्षण किया, रिपोर्ट जारी नहीं की।

ये राज्य करा चुके जातीय सर्वेक्षण (What Is Caste Census)

बिहार, तेलंगाना और कर्नाटक अपने स्तर पर जातीय जनगणना करा चुके हैं। इनका उद्देश्य राज्य की आरक्षण नीतियों को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए आंकड़े जुटाना था। बिहार के जातीय सर्वेक्षण 2023 से सामने आया कि राज्य की कुल आबादी में ओबीसी और अत्यंत पिछड़े वर्गो की हिस्सेदारी 63 प्रतिशत से अधिक है।

जातीय जनगणना से फायदा (What Is Caste Census)

इसलिए अहम भारत में जातीय जनगणना का मतलब सिर्फ जातियों की संख्या गिनना नहीं है। इसकी मांग के पीछे राजनीतिक मकसद है। इसके सामाजिक प्रभाव हो सकते हैं। राजनीतिक दलों की चुनावी रणनीति प्रभावित हो सकती है।

दूसरी जातियों के आंकड़े नहीं (What Is Caste Census)

1951 से एससी और एसटी जातियों के आंकड़ा जारी होता है, लेकिन ओबीसी और दूसरी जातियों के आंकड़े नहीं आते। ऐसे में ओबीसी की सही आबादी का अनुमान लगाना मुश्किल है। यह तर्क भी दिया जाता है कि आबादी के सही आंकड़े पता होने से उनके सामाजिक आर्थिक विकास के लिए योजनाएं बनाने में आसानी होगी।

जातीय जनगणना से नुकसान (What Is Caste Census)

एक वर्ग का मानना है कि जातीय जनगणना की मांग के पीछे मकसद पिछड़ी जतियों को सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना नहीं है, बल्कि समाज को विभाजित करके राजनीतिक फायदा हासिल करना है। इस वर्ग का कहना है कि सरकार के पास पहले से जरूरी आंकड़े हैं,

आर्थिक तरक्की के लिए नीति (What Is Caste Census)

इनके आधार पर कमजोर वर्गों के सामाजिक आर्थिक तरक्की के लिए नीतियां और कार्यक्रम प्रभावी तरीके से लागू किए जा सकते हैं और ऐसा हो भी रहा है। ऐसे में जातीय जनगणना से देश में जातीय विभाजन और गहरा होगा और इससे समाज में तनाव और कटुता पैदा होगी।

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