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विश्व साक्षरता दिवस : डिजिटल युग में शिक्षा के नए मायने, लर्निंग और जीवन कौशल पर विशेष बल

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नई दिल्ली, 7 सितंबर (khabarwala24)। सिर्फ पढ़ना-लिखना और सीखना ही साक्षरता नहीं है, बल्कि यह इंसान के जीवन की गरिमा, समानता और अवसरों से भी जुड़ी है। यही वजह है कि हर साल 8 सितंबर को विश्व साक्षरता दिवस मनाया जाता है। 1967 से शुरू हुई यह परंपरा हमें याद दिलाती है कि साक्षरता केवल व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि एक न्यायपूर्ण, शांतिपूर्ण और टिकाऊ समाज की नींव है।

यूनेस्को के अनुसार, साक्षरता एक मौलिक मानव अधिकार है। यह इंसान को न केवल ज्ञान और कौशल देती है, बल्कि उसे समाज में बराबरी का दर्जा और बेहतर जीवन जीने का अवसर भी देती है।

लेकिन, आज भी दुनिया में 73.9 करोड़ युवा और वयस्क निरक्षर हैं। 2023 में 27.2 करोड़ बच्चे और किशोर स्कूल से बाहर थे और चार में से एक बच्चा पढ़ने में न्यूनतम दक्षता हासिल नहीं कर सका। ये आंकड़े बताते हैं कि साक्षरता का सपना अभी अधूरा है और यह केवल शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरे समाज की चुनौती है।

आज शिक्षा, नौकरी, संचार और सामाजिक जीवन, सब कुछ डिजिटल प्लेटफॉर्म पर शिफ्ट हो चुका है। यह बदलाव अवसर भी देता है और चुनौतियां भी खड़ी करता है।

डिजिटल साक्षरता केवल कंप्यूटर चलाना सीखना नहीं है, बल्कि यह सही और गलत जानकारी में फर्क करने, प्राइवेसी और डेटा सुरक्षा को समझने, डिजिटल कंटेंट का सुरक्षित इस्तेमाल करने और फेक न्यूज या डिजिटल पूर्वाग्रहों से बचने की क्षमता भी है।

सही दिशा में इस्तेमाल होने पर डिजिटल टूल्स लाखों हाशिए पर खड़े लोगों तक शिक्षा पहुंचाने का मजबूत साधन बन सकते हैं, लेकिन अगर सही दिशा न मिले तो यह डबल मार्जिनलाइजेशन यानी दोहरी बहिष्कृति पैदा कर सकता है, न तो पारंपरिक शिक्षा और न ही डिजिटल अवसर।

कोविड-19 महामारी ने शिक्षा के क्षेत्र में बड़ी चोट की। एक समय में दुनिया के 62.3 फीसदी छात्रों की पढ़ाई बंद हो गई थी। लाखों बच्चों के लिए ऑनलाइन शिक्षा संभव ही नहीं थी। इसने हमें सिखाया कि शिक्षा की खाई सिर्फ किताबों की कमी से नहीं, बल्कि डिजिटल डिवाइड से भी गहरी होती जा रही है। हालांकि, इस कठिनाई के बीच कई देशों और संस्थाओं ने ठोस कदम उठाए।

भारत ने पिछले दशकों में साक्षरता दर बढ़ाने में महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन अब चुनौती यह है कि बच्चों को केवल स्कूल भेजना काफी नहीं है, बल्कि उन्हें डिजिटल रूप से सक्षम बनाना भी जरूरी है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी डिजिटल लर्निंग और जीवन कौशल पर विशेष बल दिया गया है।

विश्व साक्षरता दिवस हमें यह सोचने का अवसर देता है कि क्या हम साक्षरता को सिर्फ किताबों तक सीमित मान रहे हैं, क्या हम बच्चों और युवाओं को डिजिटल युग में आत्मनिर्भर बनने लायक तैयार कर पा रहे हैं, और क्या हमारी नीतियां हर तबके तक पहुंच पा रही हैं।

साक्षरता केवल अक्षर ज्ञान नहीं, बल्कि सोचने-समझने, सही चुनाव करने और जिम्मेदार नागरिक बनने की शक्ति है। डिजिटल युग में यह शक्ति और भी महत्वपूर्ण हो गई है।

पीएसके/एबीएम

Source : IANS

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