नई दिल्ली, 18 दिसंबर (khabarwala24)। सुप्रीम कोर्ट ने उज्जैन के महाकाल मंदिर परिसर के विस्तार के लिए तकिया मस्जिद की जमीन अधिग्रहित करने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि याचिकाकर्ता केवल एक उपासक है, जमीन का मालिक या रिकॉर्डेड टाइटल होल्डर नहीं है, इसलिए उसे अधिग्रहण प्रक्रिया को चुनौती देने का कोई अधिकार (लोकस स्टैंडी) नहीं है।
याचिकाकर्ता का यह दावा था कि तकिया मस्जिद की जमीन वक्फ बोर्ड की है और अधिग्रहण के लिए वक्फ बोर्ड की अनुमति अनिवार्य है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि व्यक्तिगत उपासक होने के नाते याचिकाकर्ता के पास जमीन पर कोई वैध अधिकार नहीं है।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने कहा कि याचिका में सीधे तौर पर अधिग्रहण के आदेशों को चुनौती नहीं दी गई है। याचिकाकर्ता केवल मुआवजे के विषय पर आपत्ति जता रहा है। ऐसे मामलों में कानून के तहत वैकल्पिक वैधानिक उपाय मौजूद हैं और सीधे अधिग्रहण को अवैध बताने का दावा याचिकाकर्ता नहीं कर सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब तक कोई व्यक्ति जमीन का स्वामी या रिकॉर्डेड टाइटल होल्डर नहीं है, वह अधिग्रहण के खिलाफ मुकदमा नहीं कर सकता। इस फैसले के बाद महाकाल मंदिर परिसर के विस्तार में अब कोई कानूनी रुकावट नहीं रह गई है।
याचिका में दावा किया गया था कि जमीन 1985 से मध्य प्रदेश वक्फ बोर्ड की वक्फ संपत्ति है और वक्फ अधिनियम की धारा 91 के तहत वक्फ बोर्ड की अनुमति के बिना इसे अधिग्रहित नहीं किया जा सकता।
दरअसल, यह मामला महाकाल लोक फेज-II परियोजना से जुड़ा हुआ है। 11 जनवरी 2025 को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने भी इसी परियोजना से जुड़े भूमि अधिग्रहण को बरकरार रखा था और कई याचिकाएं खारिज कर दी थीं। हाईकोर्ट ने भी यही बात कही थी कि याचिकाकर्ता न तो जमीन के मालिक हैं और न ही टाइटल होल्डर, इसलिए वे केवल मुआवजे के संदर्भ में ही कानून के तहत पूछताछ कर सकते हैं, अधिग्रहण को अवैध साबित नहीं कर सकते।
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