सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ : जीने का सलीका सिखाने वाली ‘राम की शक्ति पूजा’, ‘सरोज स्मृति’ जैसी रचनाओं के रचयिता

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नई दिल्ली, 14 अक्टूबर (khabarwala24)। हिंदी साहित्य के छायावादी युग के प्रमुख स्तंभ सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की रचनाएं आज भी जीवन की चुनौतियों का सामना करने और मानवीय मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देती हैं। उनकी कविताएं ‘राम की शक्ति पूजा’ और ‘सरोज स्मृति’ न केवल साहित्यिक कृतियां हैं, बल्कि एक आंतरिक शक्ति का प्रतीक हैं, जो तनाव, अवसाद, और नैतिक दुविधाओं से जूझ रहे लोगों को जीवन जीने का सलीका सिखाती हैं।

‘राम की शक्ति पूजा’ कविता हमें सिखाती है कि जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए आत्मविश्वास, आत्मिक बल, और सकारात्मक ऊर्जा आवश्यक है। जैसे भगवान राम ने मां दुर्गा की शक्ति साधना कर रावण पर विजय प्राप्त की, वैसे ही आज के दौर में व्यक्ति को अपनी आंतरिक शक्ति, मानसिक, भावनात्मक और नैतिक को जागृत करने की जरूरत है। यह कविता विशेष रूप से उन लोगों के लिए प्रासंगिक है जो करियर, सामाजिक दबाव, और व्यक्तिगत आकांक्षाओं के बीच संतुलन बनाने में संघर्ष कर रहे हैं।

वहीं, ‘सरोज स्मृति’ निराला की बेटी सरोज की असमय मृत्यु से प्रेरित एक करुण रचना है, जो गहन दुख को सहने और उसे व्यक्त करने की शक्ति प्रदान करती है। आज के समय में, जब लोग व्यक्तिगत नुकसान और भावनात्मक दुखों से जूझ रहे हैं, यह कविता मानसिक स्वास्थ्य के लिए दुख को व्यक्त करने और उसका सामना करने के महत्व को दर्शाती है। यह हमें सिखाती है कि भावनाओं को कला और साहित्य के माध्यम से व्यक्त करना न केवल उपचारात्मक है, बल्कि मानवीय संवेदनाओं को गहराई देता है।

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म 21 फरवरी 1899 को बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता एक साधारण कर्मचारी थे। निराला की औपचारिक शिक्षा सीमित थी, लेकिन उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, और हिंदी साहित्य का गहन अध्ययन किया। उनके जीवन में पत्नी और बेटी की असमय मृत्यु ने उन्हें गहरे दुख में डुबोया, जिसका प्रभाव उनकी रचनाओं में स्पष्ट दिखाई देता है।

निराला ने अपनी लेखनी से न केवल हिंदी साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि सामाजिक चेतना और मानवीय मूल्यों को भी उजागर किया।

‘राम की शक्ति पूजा’ उनकी रचनात्मकता का एक अनमोल नमूना है, जो भक्ति, प्रकृति, और आत्मिक शक्ति का सुंदर संगम प्रस्तुत करती है। उनकी रचनाएं आज भी पाठकों को प्रेरित करती हैं और हिंदी साहित्य में उनकी विरासत अमर है।

15 अक्टूबर 1961 को सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का देहांत हो गया। आज भी वह हिंदी साहित्य के प्रेमियों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। कई साहित्यकारों का मानना है कि निराला ने हिंदी साहित्य को बहुत कुछ दिया।

Source : IANS

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