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रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भरता: भारत में बनेंगे आधुनिक युद्धक वाहन व रक्षा उपकरण

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नई दिल्ली, 19 नवंबर (khabarwala24)। भारत ने रक्षा क्षेत्र व युद्ध में इस्तेमाल होने वाली कई महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजी स्वयं विकसित की है। अब इन टेक्नोलॉजी के आधार पर सैन्य बलों के लिए नए प्लेटफार्म विकसित व निर्मित किए जाएंगे। इनमें युद्धक वाहन भी शामिल हैं।

खास बात यह है कि ये रक्षा उपकरण स्वदेशी होंगे और भारतीय कंपनियां इनका निर्माण करेंगी। डीआरडीओ की एक प्रयोगशाला ने रक्षा उपकरणों से जुड़ी तकनीकें इंडस्ट्री पार्टनर्स को सौंपी हैं। रक्षा क्षेत्र में यह एक बड़ी पहल है। इससे देश का सुरक्षा तंत्र मजबूत होगा और आत्मनिर्भरता को बल मिलेगा।

डीआरडीओ के मुताबिक रक्षा सामग्री अनुसंधान प्रयोगशाला (डीएमआरएल) ने उन्नत सामग्रियों के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण स्वदेशी तकनीकों को विकसित किया है।

डीएमआरएल ने दो महत्वपूर्ण सामरिक प्रणालियों के लिए उन्नत घटक भी सौंपे हैं। इनमें एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमका) के लिए रीयर फिन रूट फिटिंग्स (आरएफआरएफ) व प्रलय मिसाइल के लिए उच्च-शक्ति वाले सिरेमिक रैडोम्स शामिल हैं।

एमका भारत द्वारा विकसित किया जा रहा पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान है। इसकी रफ्तार करीब 2500 किलोमीटर प्रतिघंटा होगी। यह सिंगल सीटर व डबल इंजन वाला मल्टीरोल स्वदेशी लड़ाकू विमान होगा।

ये विमान 10 घंटे तक लगातार उड़ान भर सकेगा। एमका के लिए आरएफआरएफ का निर्माण पूरी तरह स्वदेशी तकनीकों पर आधारित है। इसे इंवेस्टमेंट कास्टिंग और क्लोज्ड-डाई हॉट हैमर फोर्जिंग के माध्यम से भारतीय उद्योगों द्वारा डीएमआरएल के सहयोग से किया गया है।

यह उन्नत एयरो-स्ट्रक्चरल घटकों की घरेलू विनिर्माण क्षमता में एक प्रमुख उपलब्धि मानी जा रही है। अब अपने 62वें वार्षिकोत्सव के अवसर पर डीएमआरएल ने इन तकनीकों का सफलतापूर्वक हस्तांतरण उद्योग साझेदारों को किया है। डीआरडीओ के अनुसार यह कदम देश में रणनीतिक प्लेटफॉर्मों के लिए अत्याधुनिक धातु एवं मिश्रित सामग्रियों की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करेगा।

रक्षा क्षेत्र से जुड़ी आपूर्ति की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।

वार्षिकोत्सव समारोह में डीएमआरएल द्वारा जिन प्रमुख तकनीकों का हस्तांतरण किया गया, उनमें नौसेना व आर्मी से जुड़े महत्वपूर्ण उपकरण शामिल हैं। नौसैनिक उपयोग हेतु विभिन्न मोटाई वाली डीएमआर-249ए स्टील के निर्माण की तकनीक सौंपी गई है। यह तकनीक जिसे सेल और जेएसडब्लू स्टील को स्थानांतरित की गई है।

गौरतलब है कि नौसैनिक समुद्री जहाजों से लेकर विभिन्न समुद्री उपकरणों में उन्नत तकनीक वाली धातु की आवश्यकता होती है। प्रयोगशाला ने डीएमआर -1700 उच्च-प्रदर्शन स्टील फोर्जिंग एवं मिल फॉर्म निर्माण की तकनीक भी विकसित की है। इस तकनीक को सारलोहा एडवांस्ड मैटेरियल प्राइवेट लिमिटेड को सौंपा गया है।

इसके अलावा बेहद उन्नत व महत्वपूर्ण व्हील्ड आर्मर्ड प्लेटफॉर्म वाहनों के लिए हल्के समग्र कवच की जरूरतों पूरा करने के लिए खास तकनीक विकसित की गई है।

यह तकनीक लाइटवेट कॉम्पोजिट आर्मर का निर्माण करती है। यह अत्याधुनिक तकनीक एनबीटी इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड को हस्तांतरित की गई। इस बड़ी पहल पर डीआरडीओ के अध्यक्ष व रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के सचिव डॉ. समीर वी. कामत ने डीएमआरएल के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को बधाई दी।

डीआरडीओ के अध्यक्ष ने कहा कि इन महत्वपूर्ण तकनीकों का स्वदेशी विकास और उद्योग को हस्तांतरण ‘आत्मनिर्भर भारत’ के संकल्प को मजबूत करेगा। उन्होंने कहा कि इससे भारतीय सशस्त्र बलों के लिए इन सामग्रियों की विश्वसनीय और सतत आपूर्ति का एक मजबूत औद्योगिक तंत्र विकसित होगा। कार्यक्रम में वरिष्ठ वैज्ञानिकों, उद्योग साझेदारों एवं रक्षा क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों ने भाग लिया और उन्नत सामग्री विज्ञान में डीएमआरएल के योगदान की सराहना की। –

Source : IANS

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