नई दिल्ली, 6 सितंबर (khabarwala24)। जिंदगी बड़ी होनी चाहिए, लंबी नहीं । 1971 में रिलीज फिल्म आनंद में राजेश खन्ना द्वारा बोला गया ये डॉयलॉग हिंदी सिनेमा इतिहास का कालजयी डॉयलॉग माना जाता है। लेकिन, हमारे बीच के कुछ लोग अपनी जिंदगी इस डॉयलॉग की तरह जीते हैं और अपनी भौतिक उपस्थिति न होने के बावजूद अक्सर अपनी मौजूदगी का आभास कराते हैं। नीरजा भनोट ऐसा ही एक नाम है।
नीरजा भनोट का जन्म 7 सितंबर 1963 को चंडीगढ़ में हुआ था। उनके पत्रकार थे, जबकि मां कुशल गृहिणी थीं। नीरजा बचपन से ही बुद्धिमान और साहसिक प्रवृति की थीं। बॉम्बे स्कॉटिश स्कूल से शिक्षा प्राप्त नीरजा मॉडलिंग और फैशन डिजाइनिंग में रुचि रखती थीं।
महज 22 साल की उम्र में उन्होंने पैन एम एयरलाइंस में फ्लाइट अटेंडेंट के रूप में काम शुरू किया। अपनी कड़ी मेहनत की बदौलत जल्द ही वह सीनियर फ्लाइट सुपरवाइजर बन गईं। नीरजा को यात्रा करना पसंद था और दुनिया घूमना उनका सपना था। हर सपना पूरा नहीं होता, ऐसे ही नीरजा का भी दुनिया घूमने का सपना अधूरा रह गया।
5 सितंबर 1986 पैन एम की फ्लाइट 73, जो मुंबई से न्यूयॉर्क जा रही थी, उसमें नीरजा सवार हुईं। फ्लाइट कराची (पाकिस्तान) में उतरी। कराची एयरपोर्ट पर चार आतंकवादियों ने विमान को हाईजैक कर लिया। ये आतंकी अबू निदाल संगठन से जुड़े थे और उनका उद्देश्य इजरायली यात्रियों को बंधक बनाकर अमेरिकी विमान को निशाना बनाना था। विमान में 379 यात्री और 13 क्रू मेंबर थे।
हथियारों से लैस हाईजैकर्स ने विमान पर कब्जा जमा लिया और पायलट को भारत वापस लौटने का आदेश दिया। लेकिन पायलट और को-पायलट ने अपनी जान बचाने के लिए विमान छोड़ दिया। इस वजह से क्रू मेंबरों पर यात्रियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी आ गई। संकट की स्थिति में सीनियर क्रू मेंबर नीरजा ने साहस और सूझबूझ से काम लिया। उन्होंने यात्रियों को शांत रखा और उनके पासपोर्ट इकट्ठे किए। उनका मुख्य लक्ष्य इजरायली यात्रियों को बचाना था, क्योंकि आतंकियों का निशाना वे ही थे।
नीरजा ने चालाकी से इजरायली यात्रियों के पासपोर्ट छिपा दिए या उन्हें गलत नामों से छिपाया। इससे आतंकी उन्हें पहचान नहीं सके। घंटों चले डरावने संघर्ष में, जब ईंधन खत्म होने लगा और आतंकियों ने यात्रियों को गोली मारनी शुरू कर दी, नीरजा ने आपातकालीन निकास गेट खोल दिया और यात्रियों को स्लाइड से बाहर निकालने में मदद की। खुद विमान में रहते हुए उन्होंने प्रत्येक यात्री को बचाने का प्रयास किया।
तीन बच्चों को बचाने का प्रयास कर रहीं नीरजा को एक आतंकी ने पीठ में गोली मार दी। मात्र 23 साल की इस लड़की ने अपना बलिदान देकर 359 यात्रियों की जान बचाई। हाईजैकिंग में 20 लोग मारे गए थे।
भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया, जो नागरिकों को दिया जाने वाला सर्वोच्च शांति पुरस्कार है। अमेरिका ने उन्हें जस्टिस फॉर ऑल इंटरनेशनल अवॉर्ड, पाकिस्तान ने तमगा-ए-इंसानियत और ब्रिटेन ने स्पेशल करेज अवॉर्ड दिया।
नीरजा अपनी साहस और वीरता के कारण दुनियाभर के युवाओं की आदर्श हैं। 2016 में उनकी जिंदगी पर आधारित फिल्म नीरजा बनी थी, जिसमें उनका किरदार सोनम कपूर ने निभाया था।
नीरजा का निधन अपने जन्मदिन से ठीक 2 दिन पहले हो गया। लेकिन, सिर्फ 23 साल की उम्र में नीरजा ने मानवता के लिए अपनी जिंदगी का बलिदान देकर अपना नाम इतिहास में दर्ज करा लिया।
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Source : IANS
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