पटना, 1 नवंबर (khabarwala24)। बिहार के गयाजी जिले में टिकारी अनुमंडल के पास स्थित गुरुआ अपने नाम की तरह ही रहस्य और महत्व का आवरण ओढ़े हुए है। एक तरफ प्राचीन बौद्ध स्तूपों के अवशेष, तो दूसरी तरफ राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच हर चुनाव में होने वाली कांटे की टक्कर।
यह बिहार की राजनीति का एक बेहद दिलचस्प चुनावी अखाड़ा है। 1977 में विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र बनने के बाद से यह सीट औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र के छह विधानसभा क्षेत्रों में से एक बन गई।
चुनावी इतिहास बताता है कि यह सीट भाजपा और राजद के बीच मुकाबले का केंद्र रही है। 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र नाथ वर्मा ने पहली जीत दर्ज की थी। इसके बाद इस सीट पर राजद का प्रभुत्व रहा। राजद के शकील अहमद खान ने 2000 से 2005 के बीच लगातार तीन बार इस सीट पर जीत का परचम लहराया था। हालांकि, जनता दल यूनाइटेड (जदयू) आज तक इस सीट पर कभी जीत दर्ज नहीं कर पाई है।
पिछले कुछ चुनाव बताते हैं कि गुरुआ का चुनावी गणित एक खास पैटर्न पर चलता है। जीत का अंतर लगभग 6,500 वोटों के आसपास बना रहता है।
2020 के विधानसभा चुनाव में, राजद के विनय यादव ने भाजपा के राजीव नंदन डांगी को करीब 6 हजार के अंतर से हराया था। खास बात यह रही थी कि बसपा के राघवेंद्र नारायण यादव ने 15 हजार वोट लाकर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया था।
हाल ही में हुए 2024 के लोकसभा चुनावों में भी राजद उम्मीदवार ने गुरुआ विधानसभा क्षेत्र में 6,970 वोटों की बढ़त हासिल की।
यह सीट अब तक आरजेडी और भाजपा, दोनों ने छह-छह बार जीती है, जबकि कांग्रेस और निर्दलीय उम्मीदवारों ने दो-दो बार जीत हासिल की है।
गुरुआ विधानसभा सीट, भले ही सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित है, पर यहां का सामाजिक ताना-बाना बेहद निर्णायक है। यहां अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है, जो कुल मतदाताओं का लगभग 32.4 प्रतिशत है। मुस्लिम आबादी की हिस्सेदारी भी लगभग 9.4 प्रतिशत है। इनके अलावा, यादव, राजपूत, कोइरी और पासवान मतदाताओं की संख्या भी यहां के चुनावी समीकरणों को प्रभावित करती है।
गुरुआ के अतीत की कहानी इसकी मिट्टी में दबी हुई है। इतिहासकारों का मानना है कि यह क्षेत्र प्राचीन मगध साम्राज्य का अभिन्न अंग रहा है, जिससे इसका ऐतिहासिक महत्व और भी बढ़ जाता है। गयाजी से लगभग 31 किलोमीटर और पवित्र बोधगया से 46 किलोमीटर दूर स्थित गुरुआ के नाम की उत्पत्ति भी एक पहेली है।
हाल के पुरातात्विक प्रयासों ने इस रहस्य से पर्दे को उठाना शुरू किया है। गुरुआ प्रखंड का भुरहा गांव इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। पौराणिक ग्रंथों में भी उल्लेखित इस गांव को प्राचीन बौद्ध सभ्यता का महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है। किंवदंती है कि ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध स्वयं बोधगया से सारनाथ जाते समय इस क्षेत्र से होकर गुजरे थे। यहां पाई गई बुद्ध की प्रतिमाएं इस बात की गवाही देती हैं कि यह क्षेत्र कभी बौद्ध कला निर्माण का एक बड़ा केंद्र रहा होगा।
वर्ष 1847 में मेजर किट्टो ने इस स्थल का सर्वेक्षण किया था, जिसमें बौद्ध स्तूपों, चैत्यों और विहारों के अवशेष सामने आए। बाद की खुदाई में 6वीं से 10वीं शताब्दी तक के स्तंभ, अभिलेख और पूजात्मक स्तूप भी मिले हैं।
इतिहास के गौरवशाली पन्नों से निकलकर हम आधुनिक गुरुआ प्रखंड को देखते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, गुरुआ की कुल जनसंख्या 1,84,286 थी। यहां प्रति वर्ग किलोमीटर जनसंख्या घनत्व 928 व्यक्ति था।
आंकड़े बताते हैं कि गुरुआ की आत्मा आज भी गांवों में बसती है। यह क्षेत्र लगभग पूरी तरह से ग्रामीण है, जहां 2020 विधानसभा चुनाव के कुल मतदाताओं (2,86,233) में से मात्र 1.22 प्रतिशत मतदाता ही शहरी थे।
यह वह सीट है जो अपने ऐतिहासिक महत्व के साथ-साथ, हर चुनाव में एक बेहद करीबी और रोमांचक मुकाबले का वादा करती है।
Source : IANS
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