नई दिल्ली, 5 नवंबर (khabarwala24)। श्री गुरु नानक देव जी से जुड़े स्थानों में गुजरात का लखपत भी शामिल है। एक समय विनाशकारी भूकंप ने लखपत स्थित गुरुद्वारे को खंडहर बना दिया था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुद्वारे को उसके गौरव के साथ पुनर्स्थापित किया था और आज यह ग्लोबल हेरिटेज में गिना जाता है।
श्री गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व के मौके पर ‘मोदी आर्काइव’ में लखपत के गुरुद्वारे के बारे में बताया गया है।
लखपत, कच्छ के सुदूर उत्तर-पश्चिमी कोने में, विशाल रण के उत्तर की ओर स्थित है। यह कभी एक प्रमुख बंदरगाह शहर था। लखपत अपने धार्मिक इतिहास के लिए भी महत्वपूर्ण है। 2014 में प्रधानमंत्री की शपथ से पहले नरेंद्र मोदी ने एक बयान में कहा था कि सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव जी अपनी यात्राओं के दौरान यहीं रुके थे। बाद में यह स्थल एक गुरुद्वारा बन गया, जहां श्री गुरु नानक देव जी की संपत्तियां रखी हैं।
उन्होंने अपने एक बयान में कहा, “मुझे इस बात को कहने में खुशी हो रही है कि लखपत के गुरुद्वारे में आज भी श्री गुरु नानक देव जी की पादुकाओं को संभाल कर रखा गया है। गुरु नानक देव जी गुजरात पधारे थे और पंजाब के बहुत कम लोगों को पता होगा कि गुरुद्वारे के साथ गुरु नानक देव की स्मृतियां जुड़ी हुई हैं। वे सिंध जाने से पहले लंबे अरसे तक लखपत में रुके थे।”
‘मोदी आर्काइव’ में बताया गया है कि 2001 में, एक विनाशकारी भूकंप ने लखपत स्थित गुरुद्वारे को मलबे में बदल दिया था। उस समय, नरेंद्र मोदी कच्छ में एक स्वयंसेवक थे और इस विनाश से बहुत दुखी थे।
उन्होंने अपने बयान में कहा, “भूकंप में ये गुरुद्वारा नष्ट हो गया। जब मैं मुख्यमंत्री के रूप में वहां गया तो सबसे पहले मैंने वहां कच्छ के भूकंप पीड़ितों की सेवा का काम शुरू किया। लखपत में गुरुद्वारे की दुर्दशा देखी, भूकंप के कारण वह टूट चुका था। हमने इस विषय के जानकार लोगों को बुलाया और मन में ठान लिया कि ये पूरी मानव जाति की अनमोल विरासत है। यह सिर्फ गुरुद्वारा नहीं है, यह गुरु नानक देव जी की स्मृतियों से जुड़ा हुआ है।”
कुछ महीनों बाद मुख्यमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने लखपत गुरुद्वारा साहिब को उसके मूल गौरव के साथ पुनर्स्थापित किया था।
अपने संकल्प की बात करते हुए उन्होंने बताया, “हम दोबारा वैसा ही गुरुद्वारा बनाएंगे, जिस तरह का आर्किटेक्चर था, जिस प्रकार की मिट्टी का उपयोग किया गया था और जिस प्रकार से हर काम को बारीकी से सदियों पहले किया गया था, हमें सब वैसा ही करना था। इसके लिए हमने गुजरात के बाहर से एक्सपर्ट्स बुलाए और वैसा ही गुरुद्वारा फिर से बनवाया। आज उसको दुनिया की विरासत के अंदर स्थान मिला है।”
पुनर्निर्मित लखपत गुरुद्वारा साहिब को सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में उत्कृष्टता के लिए 2004 में यूनेस्को एशिया-प्रशांत विरासत संरक्षण पुरस्कार मिला। यह जीर्णोद्धार श्री गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के प्रति एक श्रद्धांजलि है।
Source : IANS
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