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Axiom Mission 4 Live: अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पहुंचे Shubhanshu Shukla, 14 दिन अंतरिक्ष में रहकर करेंगे ये काम

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Khabarwala24 News: भारत के लिए गर्व का पल! भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला (Shubhanshu Shukla) ने अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (International Space Station – ISS) पर कदम रखकर इतिहास रच दिया है। Axiom Mission 4 (Ax-4) के तहत शुभांशु शुक्ला और तीन अन्य प्राइवेट अंतरिक्ष यात्रियों ने गुरुवार को शाम करीब 4 बजे ISS पर सफलतापूर्वक डॉकिंग की। इस मिशन में उनके साथ पोलैंड, अमेरिका और हंगरी के अंतरिक्ष यात्री शामिल हैं। यह मिशन SpaceX के Falcon 9 रॉकेट और Dragon spacecraft के जरिए पूरा हुआ। शुभांशु अगले 14 दिनों तक अंतरिक्ष में रहकर सात महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रयोग (experiments) करेंगे।

Axiom Mission 4: मिशन की शुरुआत और चुनौतियां

Axiom Mission 4 को नासा के Kennedy Space Center, फ्लोरिडा के Cape Canaveral से बुधवार को दोपहर 12:01 बजे लॉन्च किया गया। यह मिशन कई बार स्थगित होने के बाद और करीब एक महीने की देरी के साथ आखिरकार सफल रहा। SpaceX के Falcon 9 रॉकेट ने Dragon spacecraft को अंतरिक्ष में ले जाया, जिसमें शुभांशु शुक्ला के साथ तीन अन्य अंतरिक्ष यात्री सवार थे। इनमें पोलैंड के मिशन स्पेशलिस्ट स्लावोज उज्नास्की-विस्नीव्स्की, हंगरी के टिबोर कापू, और अमेरिका की कमांडर पैगी व्हिटसन शामिल हैं। पैगी व्हिटसन पहले NASA की अंतरिक्ष यात्री रह चुकी हैं और अब Axiom Space कंपनी के लिए काम करती हैं।

लॉन्च के बाद Dragon spacecraft ने करीब 28 घंटे तक पृथ्वी की परिक्रमा (orbit) की और तय समय से 34 मिनट पहले ISS पर पहुंच गया। इस मिशन की सफलता ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को एक नई ऊंचाई दी है। शुभांशु शुक्ला ने स्पेसक्राफ्ट से बातचीत के दौरान कहा, “Namaste from Space! मैं अपने साथी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ यहां होने के लिए बहुत excited हूं।”

अंतरिक्ष में डॉकिंग क्या है?

डॉकिंग (Docking) अंतरिक्ष यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह वह प्रक्रिया है जिसमें एक अंतरिक्ष यान (spacecraft) अपने आप अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) से जुड़ता है। NASA इसे mating operations कहता है, जिसमें एक एक्टिव व्हीकल अपनी ताकत और तकनीक का उपयोग करके ISS के mating interface से कनेक्ट होता है।

इसरो (ISRO) के अनुसार, डॉकिंग टेक्नोलॉजी का उपयोग तब किया जाता है जब कई रॉकेट या अंतरिक्ष यान मिशन के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए एक साथ काम करते हैं। ISS को अंतरिक्ष यात्रियों का “अंतरिक्ष में घर” कहा जाता है, जहां वे महीनों तक रहकर वैज्ञानिक प्रयोग करते हैं। शुभांशु और उनके साथी अंतरिक्ष यात्रियों ने Dragon spacecraft के जरिए ISS पर सफलतापूर्वक डॉकिंग की, जो इस मिशन की एक बड़ी उपलब्धि है।

शुभांशु शुक्ला के सात वैज्ञानिक प्रयोग

शुभांशु शुक्ला अगले 14 दिनों तक ISS पर रहकर सात महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे। ये प्रयोग भारतीय संस्थानों के सहयोग से किए जा रहे हैं और इनका उद्देश्य भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों और मानव स्वास्थ्य के लिए नई जानकारियां जुटाना है। आइए, इन सात रिसर्च के बारे में विस्तार से जानते हैं।

1. मायोजेनेसिस स्टडी: मांसपेशियों पर माइक्रोग्रैविटी का असर

पहला प्रयोग मायोजेनेसिस (Myogenesis) से जुड़ा है, जिसमें माइक्रोग्रैविटी (microgravity) के मांसपेशियों पर असर का अध्ययन किया जाएगा। अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने वाले अंतरिक्ष यात्रियों की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं और उनकी मास (muscle mass) घटने लगती है। भारतीय अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स के साथ भी ऐसा ही हुआ था।

यह स्टडी Institute of Stem Cell Science and Regenerative Medicine, भारत द्वारा डिजाइन की गई है। इस प्रयोग के जरिए मांसपेशियों से जुड़ी बीमारियों का अध्ययन किया जाएगा और ऐसे इलाज विकसित करने की कोशिश होगी जो भविष्य के अंतरिक्ष यात्रियों के लिए फायदेमंद हों। यह रिसर्च अंतरिक्ष यात्रा के दौरान मांसपेशियों की सेहत को बनाए रखने में मदद करेगा।

2. फसलों के बीजों पर माइक्रोग्रैविटी का प्रभाव

दूसरा प्रयोग फसलों के बीजों (seeds) से जुड़ा है। शुभांशु यह अध्ययन करेंगे कि माइक्रोग्रैविटी का बीजों के जेनेटिक गुणों (genetic properties) पर क्या असर पड़ता है। यह रिसर्च भविष्य में अंतरिक्ष में खेती करने की संभावनाओं को तलाशने में मदद करेगा। अगर अंतरिक्ष में फसल उगाना संभव हुआ, तो यह लंबे मिशनों के लिए भोजन की कमी को दूर कर सकता है।

3. टार्डीग्रेड्स: सबसे सहनशील जीव पर अध्ययन

तीसरा प्रयोग टार्डीग्रेड्स (Tardigrades) पर आधारित है। ये आधे मिलीमीटर से भी छोटे जीव हैं, जिन्हें दुनिया का सबसे कठोर और सहनशील प्राणी माना जाता है। ये जीव धरती पर 60 करोड़ साल से मौजूद हैं और अत्यधिक परिस्थितियों में भी जीवित रह सकते हैं। शुभांशु यह अध्ययन करेंगे कि माइक्रोग्रैविटी और अंतरिक्ष की कठिन परिस्थितियां इनके शरीर पर क्या प्रभाव डालती हैं। इस रिसर्च से अंतरिक्ष में जैविक प्रक्रियाओं को समझने में मदद मिलेगी।

4. माइक्रोएल्गी: भविष्य का भोजन?

चौथा प्रयोग माइक्रोएल्गी (Microalgae) पर केंद्रित है। ये सूक्ष्म शैवाल मीठे पानी और समुद्री वातावरण में पाए जाते हैं। शुभांशु यह जांच करेंगे कि माइक्रोग्रैविटी का इन शैवालों पर क्या असर पड़ता है। इस रिसर्च का उद्देश्य यह पता लगाना है कि क्या भविष्य के लंबे अंतरिक्ष मिशनों में माइक्रोएल्गी अंतरिक्ष यात्रियों के लिए पोषण (nutrition) का स्रोत बन सकते हैं। यह पर्यावरण और अंतरिक्ष यात्रा दोनों के लिए क्रांतिकारी हो सकता है।

5. मूंग और मेथी के बीजों का अंकुरण

पांचवां प्रयोग मूंग और मेथी के बीजों पर आधारित है। शुभांशु यह अध्ययन करेंगे कि माइक्रोग्रैविटी में इन बीजों का अंकुरण (germination) कैसे होता है। इस रिसर्च का मकसद यह जानना है कि क्या अंतरिक्ष में बीजों को अंकुरित करके भोजन उगाया जा सकता है। अगर यह संभव हुआ, तो यह अंतरिक्ष में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।

6. बैक्टीरिया पर रिसर्च

छठा प्रयोग बैक्टीरिया की दो प्रजातियों पर आधारित है। शुभांशु यह अध्ययन करेंगे कि अंतरिक्ष की परिस्थितियां इन बैक्टीरिया पर क्या प्रभाव डालती हैं। यह रिसर्च अंतरिक्ष में सूक्ष्मजीवों (microorganisms) के व्यवहार को समझने और भविष्य के मिशनों में जैविक खतरों को रोकने में मदद करेगा।

7. कंप्यूटर स्क्रीन का आंखों पर असर

सातवां और अंतिम प्रयोग माइक्रोग्रैविटी में कंप्यूटर स्क्रीन के आंखों पर प्रभाव से जुड़ा है। अंतरिक्ष यात्रियों को लंबे समय तक स्क्रीन पर काम करना पड़ता है, और माइक्रोग्रैविटी इस अनुभव को और जटिल बनाती है। शुभांशु यह अध्ययन करेंगे कि यह स्थिति आंखों की सेहत को कैसे प्रभावित करती है। इस रिसर्च के नतीजे अंतरिक्ष यात्रियों के लिए बेहतर कार्य वातावरण बनाने में मदद करेंगे।

शुभांशु शुक्ला (Shubhanshu Shukla): भारत का गौरव

शुभांशु शुक्ला भारत के पहले ऐसे अंतरिक्ष यात्री हैं जो Axiom Mission का हिस्सा बने हैं। उनकी यह उपलब्धि न केवल भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का विषय है। Axiom Mission 4 में उनकी भागीदारी भारत के बढ़ते अंतरिक्ष कार्यक्रम और वैज्ञानिक अनुसंधान में योगदान को दर्शाती है।

शुभांशु ने मिशन से पहले Dragon spacecraft से बातचीत के दौरान अपने उत्साह को व्यक्त किया। उन्होंने कहा, “मैं अपने साथी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ इस ऐतिहासिक मिशन का हिस्सा बनकर गर्व महसूस कर रहा हूं।” उनकी यह बात भारतीयों के दिलों को छू गई।

Axiom Mission 4 का महत्व

Axiom Mission 4 न केवल भारत बल्कि वैश्विक अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह मिशन Axiom Space और NASA के सहयोग से संचालित किया जा रहा है, जिसमें SpaceX की तकनीक का उपयोग हुआ है। इस मिशन के जरिए निजी कंपनियां (private companies) अंतरिक्ष अनुसंधान में अपनी भूमिका बढ़ा रही हैं। शुभांशु के सात प्रयोग न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि ये भविष्य के लंबे अंतरिक्ष मिशनों के लिए भी रास्ता तैयार करेंगे।

अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS): अंतरिक्ष में घर

अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) अंतरिक्ष यात्रियों के लिए एक प्रयोगशाला और घर दोनों है। यह पृथ्वी से करीब 400 किलोमीटर ऊपर लो अर्थ ऑर्बिट (Low Earth Orbit) में चक्कर लगाता है। ISS पर अंतरिक्ष यात्री माइक्रोग्रैविटी में रहकर वैज्ञानिक प्रयोग करते हैं, जो धरती पर संभव नहीं हैं। शुभांशु और उनके साथी अगले 14 दिनों तक इसी स्टेशन पर रहकर अपने रिसर्च को अंजाम देंगे।

भारत का अंतरिक्ष में बढ़ता कदम

शुभांशु शुक्ला का यह मिशन भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की ताकत को दर्शाता है। ISRO ने हाल के वर्षों में चंद्रयान, मंगलयान, और गगनयान जैसे मिशनों के जरिए अपनी क्षमता साबित की है। शुभांशु का ISS पर जाना इस बात का प्रमाण है कि भारत अब अंतरिक्ष अनुसंधान में दुनिया के अग्रणी देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहा है।

Axiom Mission 4 और शुभांशु शुक्ला की उपलब्धि भारत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है। उनके सात वैज्ञानिक प्रयोग न केवल अंतरिक्ष अनुसंधान को नई दिशा देंगे, बल्कि भविष्य के मिशनों के लिए भी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे। माइक्रोग्रैविटी, टार्डीग्रेड्स, माइक्रोएल्गी, और बीज अंकुरण जैसे विषयों पर उनके रिसर्च से अंतरिक्ष में मानव जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में कदम बढ़ेगा। शुभांशु का यह मिशन हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है, और यह दिखाता है कि भारत अब अंतरिक्ष की दुनिया में नई ऊंचाइयों को छू रहा है।

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