Khabarwala 24 News New Delhi : Capsule Covers बीमारी में हम टैबलेट्स, कैप्सूल्स, इंजेक्शन या सीरप के ट्रीटमेंट प्रिस्क्राइब करते हैं। इसमें कई खाने वाली दवाओं को किसी कवर से बंद करने के लिए कई टेक्निकों का इस्तेमाल किया जाता है। इस कवर को ही कैप्सूल कहते हैं।
Capsule Coversइसके अंदर दवाइयों को पीस कर पाउडर भर दिया जाता है। कैप्सूल बनाने के तरीके को इनकैप्सुलेशन कहते हैं लेकिन ऐसे में एक सवाल उठता है आखिर कैप्सूल का कवर बनता कैसे है। आमतौर पर कई लोग कवर वाले हिस्से को प्लास्टिक से बना समझते हैं। हालांकि कवर जिलेटिन से बनता हैं।
दवा को निगलने में कतराते हैं (Capsule Covers)
कैप्सूल के पैकेट या डिब्बे पर उसमें मौजूद मेडिसिन कंटेंट की जानकारी दी जाती है लेकिन, कई कंपनियां आपको ये नहीं बताती हैं कि कैप्सूल कवर ‘जिलेटिन’ से बना हुआ है लेकिन जिलेटिन बनने के तरीके को जब आप जानेंगे तो आप हैरान रह जाएंगे। दरअसल इसको जानवरों की हड्डियों या स्किन को उबालकर निकाला जाता है। इसके बाद इसे प्रॉसेस कर चमकदार और लचीला बना दिया जाता है। कैप्सूल को खास उन लोगों के लिए बनाया गया था, जो दवा को निगलने में कतराते हैं। कैप्सूल से दवाई निगलना आसान हो जाता है।
दो तरह के होते हैं कैप्सूल कवर (Capsule Covers)
कैप्सूल के कवर दो तरह के होते हैं। पहला हार्ड शेल्ड होता है तो वहीं दूसरा सॉफ्ट शेल्ड। दोनों ही तरह के कैप्सूल कवर्स जानवरों के साथ-साथ प्रोटीन वाले पेड़-पौधों के लिक्विड से भी बनाए जाते हैं। जो कैप्सूल्स के कवर जानवरों के प्रोटीन से बनाए जाते हैं, उसको जिलेटिन कहा जाता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक जिलेटिन आधारित कैप्सूल का अधिक इस्तेमाल किया जाए तो किडनी और लीवर को नुकसान पहुंच सकता है। जो कैप्सूल कवर्स प्रोटीन वाले पेड़-पौधों के लिक्विड से बनाए जाते हैं, उन्हें सेल्यूलोज कहा जाता है। ये पूरी तरह से कुदरती होते हैं। इस तरह के कैप्सूल को हमारा पाचन तंत्र आसानी से पचा लेता है।
शरीर में काम करता है कैप्सूल (Capsule Covers)
जब हम कैप्सूल खाते हैं तो उसका कवर शरीर में जाकर घुल जाता है और इसके बाद दवाई अपना काम शुरू कर देती है। कवर से हमारे शरीर को प्रोटीन मिलता है। जिलेटिन से बना ये कवर शरीर को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाता है। कई कैप्सूल्स के कवर पौधों से मिलने वाले प्रोटीन से बनते हैं। ये प्रोटीन पौधों की छाल से निकाल कर बनाया जाता है। कैप्सूल के कवर बनाने के लिए इस प्रोटीन को सेल्यूलोज प्रजाति के पेड़ों का इस्तेमाल किया जाता है। कई हेल्थ रिसर्च में दावा किया गया है कि ज्यादातर फार्मा कंपनियां पशुओं के उत्पादों से बने जिलेटिन कवर वाले कैप्सूल बेचती हैं।
दवाई पीस कर भरी जाती है (Capsule Covers)
कैप्सूल बनाने में जिलेटिन और सैल्यूलोज के कवर का ही इस्तेमाल किया जाता है। इस कवर में दवाई पीस कर भरी जाती है। कैप्सूल के कवर को दो अलग रंगों से बनाया जाता है। इसका कारण कैप्सूल को खूबसूरत बनाना नहीं होता है, बल्कि इसका एक बड़ा कारण होता है। कैप्सूल दो हिस्से में होता है। एक हिस्से को कंटेनर कहते हैं, इसमें दवाई भरी जाती है। वहीं दूसरे हिस्से को कैप कहा जाता है, जिससे कैप्सूल को बंद किया जाता है। कैप और कंटेनर का रंग इसलिए अलग रखा जाता है, जिससे कैप्सूल बनाते समय कर्मचारियों से कोई गड़बड़ न हो।