नई दिल्ली, 13 नवंबर (khabarwala24)। आयरन और कैल्शियम की कमी को लेकर आमतौर पर सब सजग रहते हैं। इसके फायदे और नुकसान सब पर विस्तृत लेख और विचार हम झट से प्रस्तुत कर देते हैं। लेकिन इन दिनों ‘ग्रीन वेपन’ का बहुत जिक्र हो रहा है। ये ऐसा हथियार है जो खामोशी से थकान, तनाव और शुगर जैसी समस्याओं की धार कुंद करता चलता है। ये वो पोषक तत्व है जिसे इन दिनों स्वास्थ्य विशेषज्ञ ‘भूला हुआ मिनरल’ कह रहे हैं। ये बिसराया हुआ खनिज ‘मैग्नीशियम’ है।
हाल की रिसर्च बताती है कि इसका हरा रूप यानी क्लोरोफिल-समृद्ध हरा मैग्नीशियम हमारे शरीर की ऊर्जा, नींद और मानसिक संतुलन के लिए बेहद जरूरी है।
अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन की 2025 की स्टडी के अनुसार, दुनिया की लगभग 70 फीसदी आबादी में मैग्नीशियम का स्तर सामान्य से कम है। इसकी सबसे बड़ी वजह है फास्ट फूड, प्रोसेस्ड आहार और तनाव से भरी दिनचर्या। यही कमी हमें थकान, अनिद्रा, ब्लड शुगर असंतुलन और यहां तक कि एंग्जायटी की ओर ले जाती है।
मैग्नीशियम शरीर की 300 से ज्यादा बायोकेमिकल क्रियाओं (दिल की धड़कन से लेकर इंसुलिन नियंत्रण और मांसपेशियों की ऊर्जा) में शामिल है। लेकिन ‘हरी मैग्नीशियम’ या ‘प्लांट-सोर्स्ड मैग्नीशियम’, जो क्लोरोफिल से जुड़ा होता है, शरीर में अधिक धीरे और संतुलित रूप से अवशोषित होता है। यही कारण है कि इसे अब ‘सस्टेनेबल मिनरल’ कहा जा रहा है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि पालक, मेथी, सहजन की पत्तियां, चुकंदर के पत्ते, मटर, एवोकाडो और सूरजमुखी के बीज ग्रीन मैग्नीशियम पावरहाउस हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ टोक्यो की 2024 की एक स्टडी में पाया गया कि जो लोग रोजाना एक कप हरी पत्तेदार सब्जियां खाते हैं, उनमें ब्लड शुगर स्पाइक 25 फीसदी तक कम और स्लीप क्वालिटी 30 फीसदी बेहतर होती है।
दिलचस्प बात यह है कि ‘हरी मैग्नीशियम डाइट’ मानसिक स्वास्थ्य से भी जुड़ी है। क्लोरोफिल और मैग्नीशियम मिलकर ‘गामा-एमिनोब्यूटिरिक एसिड (जीएबीए)’ नामक न्यूरोट्रांसमीटर को सक्रिय करते हैं, जो तनाव और चिंता को कम करने के लिए जिम्मेदार है। यही कारण है कि कई न्यूट्रिशनिस्ट अब इसे ‘नेचुरल रिलैक्सर’ कहते हैं।
कई फिटनेस एक्सपर्ट अब “ग्रीन स्मूदी रूटीन” की सिफारिश करते हैं। सुबह पालक, कीवी, नींबू और फ्लैक्स सीड से बनी ड्रिंक, जो ऊर्जा और ब्लड शुगर दोनों को संतुलित रखती है। भारत में आयुर्वेद विशेषज्ञ इसे “हरी तासीर वाली ऊर्जा” कहते हैं।
विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि सप्लीमेंट्स की बजाय प्राकृतिक स्रोतों से मैग्नीशियम लेना बेहतर है। अत्यधिक सप्लीमेंट सेवन से शरीर में मिनरल असंतुलन या डायरिया जैसी दिक्कतें हो सकती हैं। डब्ल्यूएचओ की न्यूट्रिशन गाइडलाइन (2025) भी कहती है, “हर दिन की जरूरत का 70–80 फीसदी पोषण भोजन से ही पूरा होना चाहिए, न कि कैप्सूल से।”
Source : IANS
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