Khabarwala24 News Gold In India: भारत में सोने (Gold) का शौक कोई नई बात नहीं है। यह हमारी संस्कृति, परंपरा और आर्थिक आदतों का हिस्सा है। भारतीय घरों में जमा सोना न केवल धन-संपत्ति का प्रतीक है, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर भी हमारी आर्थिक ताकत को दर्शाता है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (WGC) के अनुसार, भारतीय घरों और मंदिरों में लगभग 25,000 टन सोना जमा है, जिसकी कीमत करीब 2.4 ट्रिलियन डॉलर है। यह राशि भारत की वित्त वर्ष 2025-26 की अनुमानित GDP का 56% है।
हैरानी की बात यह है कि यह सोने (Gold) का भंडार पाकिस्तान की पूरी अर्थव्यवस्था (लगभग 411 अरब डॉलर) से छह गुना ज्यादा है। इतना ही नहीं, यह इटली (2.4 ट्रिलियन डॉलर) और कनाडा (2.33 ट्रिलियन डॉलर) जैसे विकसित देशों की GDP से भी बड़ा है।
सोने की कीमतों में उछाल: भारतीयों की संपत्ति बढ़ी (Gold In India
यूबीएस (UBS) की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2019-20 से सोने की कीमतें दोगुनी हो चुकी हैं। इसकी वजह से भारतीय घरों की संपत्ति में भारी इजाफा हुआ है। UBS का अनुमान है कि 2026 तक सोने (Gold) की कीमतें बढ़कर 3,500 डॉलर प्रति औंस हो सकती हैं। इसका कारण वैश्विक स्तर पर ट्रेड टेंशन, महंगाई और भू-राजनीतिक जोखिम हैं। हालांकि, वित्त वर्ष 2025-26 में भारत में सोने की मांग थोड़ी कम हो सकती है, लेकिन ऊंची कीमतों के कारण नेट इम्पोर्ट 55-60 अरब डॉलर के आसपास रहेगा, जो GDP का लगभग 1.2% है।
सोने की बढ़ती कीमतों ने उन लोगों को बड़ा फायदा पहुंचाया है, जिन्होंने पहले से सोना खरीद रखा था। भारतीय घरों में सोना केवल एक इन्वेस्टमेंट नहीं, बल्कि एक सुरक्षा कवच भी है, जो आर्थिक अनिश्चितता और महंगाई से बचाता है।
भारत में सोने की मांग: हमेशा बनी रहती है (Gold In India)
भारत में सोने (Gold) की डिमांड हमेशा हाई रहती है। वित्त वर्ष 2024-25 में भारत में 782 टन सोने की खपत हुई, जो महामारी से पहले के औसत से 15% ज्यादा है। हालांकि, ज्वेलरी की मांग में थोड़ी कमी आई, लेकिन गोल्ड बार और सिक्कों में रिटेल इन्वेस्टमेंट 25% बढ़ा। इसका बड़ा कारण 2024 के मध्य में कस्टम ड्यूटी को 15% से घटाकर 6% करना था।
यूबीएस का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2025-26 में सोने (Gold) की मांग घटकर 725 टन रह सकती है, लेकिन 2026-27 में यह फिर बढ़कर 800 टन तक पहुंच जाएगी। इसका कारण घरों की खपत का स्थिर होना और 8वें सेंट्रल पे कमीशन से 55 अरब डॉलर की सैलरी बढ़ने की उम्मीद है। इससे लोग फिजिकल सेविंग जैसे रियल एस्टेट और सोने में ज्यादा निवेश करेंगे।
सोने का सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व (Gold In India)
भारत में सोना सिर्फ एक धातु नहीं, बल्कि संस्कृति का हिस्सा है। शादियों, त्योहारों और शुभ अवसरों पर सोने का लेन-देन एक जरूरी परंपरा है। इसे समृद्धि और प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है। चाहे दीवाली हो या अक्षय तृतीया, लोग सोना खरीदना शुभ मानते हैं।
भारतीय परिवारों के लिए सोना सेविंग का पारंपरिक साधन भी है। यह महंगाई और आर्थिक अनिश्चितता से बचाने का काम करता है। गांवों से लेकर शहरों तक, हर वर्ग के लोग सोने में निवेश करते हैं। महिलाएं इसे अपने स्ट्राइडन (Stridhan) के रूप में रखती हैं, जो उनकी निजी संपत्ति होती है।
आर्थिक क्षमता: सोने का भंडार और गोल्ड मोनेटाइजेशन (Gold In India)
भारत के घरों में जमा सोना देश की छिपी आर्थिक ताकत को दर्शाता है। अगर इस सोने को औपचारिक अर्थव्यवस्था में लाया जाए, तो यह देश के विकास में बड़ी भूमिका निभा सकता है। सरकार ने इसके लिए गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम (GMS) और सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड्स (SGBs) जैसी योजनाएं शुरू की थीं, लेकिन ये ज्यादा सफल नहीं हुईं।
यूबीएस के अनुसार, भारतीय घरों में रखे सोने का 2% से भी कम हिस्सा गोल्ड लोन के लिए इस्तेमाल होता है। बजाज फाइनेंस, श्रीराम फाइनेंस और चोलामंडलम जैसी कंपनियां गोल्ड-बैक्ड लेंडिंग में हिस्सेदारी बढ़ा रही हैं, लेकिन भावनात्मक लगाव के कारण लोग अपने सोने को गिरवी रखने से हिचकते हैं। फरवरी 2024 में SGB स्कीम को बंद कर दिया गया, क्योंकि सोने की बढ़ती कीमतों ने सरकार की फाइनेंशियल लायबिलिटी को बढ़ा दिया था।
वैश्विक स्तर पर भारत का सोना
भारत दुनिया में सोने का सबसे बड़ा उपभोक्ता देशों में से एक है। भारतीय घरों में जमा सोना वैश्विक गोल्ड मार्केट पर भी असर डालता है। भारत दुनिया के निजी सोने के स्टॉक का 14% हिस्सा रखता है, जो इसे सबसे बड़ा निजी धारक बनाता है।
सोने की बढ़ती कीमतों ने भारतीयों को और अमीर बनाया है। यूबीएस का कहना है कि अनिश्चितता के इस दौर में भारत का सोने पर भरोसा फायदेमंद साबित हो रहा है। चाहे इन्फ्लेशन हो या ग्लोबल इकोनॉमिक क्राइसिस, सोना हमेशा एक सेफ हैवन रहा है।
सोने के इम्पोर्ट और करंट अकाउंट डेफिसिट
भारत में सोने का भारी इम्पोर्ट होता है, लेकिन करंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) अभी भी कंट्रोल में है। यूबीएस के अनुसार, कोरोना महामारी के बाद सर्विस ट्रेड सरप्लस और रेमिटेंस फ्लो जैसे बफर ने सोने के इम्पोर्ट से होने वाले नुकसान को कम किया है।
सरकार सोने के इम्पोर्ट को कम करने की कोशिश कर रही है, क्योंकि इससे ट्रेड डेफिसिट बढ़ता है। इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ाने जैसे कदमों से सोने की मांग को कंट्रोल किया जा सकता है। हालांकि, भारतीयों का सोने से प्यार इतना गहरा है कि डिमांड पूरी तरह कम करना मुश्किल है।
सोने के अलावा रियल एस्टेट में भी निवेश
भारत में सोना ही नहीं, रियल एस्टेट भी एक पॉपुलर इन्वेस्टमेंट है। लोग जमीन और मकान खरीदते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इनकी कीमतें हमेशा बढ़ती रहेंगी। खासकर 8वें पे कमीशन के बाद सैलरी बढ़ने से लोग रियल एस्टेट और सोने में ज्यादा पैसा लगाएंगे।
रियल एस्टेट और सोना दोनों ही भारतीयों के लिए लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टमेंट हैं। ये न केवल उनकी संपत्ति बढ़ाते हैं, बल्कि फाइनेंशियल सिक्योरिटी भी देते हैं।
भारत का सोना: भविष्य की संभावनाएं (Gold In India)
भारत में सोने का भंडार (Gold In India) एक अथाह खजाना है, लेकिन इसका पूरा इस्तेमाल नहीं हो पा रहा। अगर सरकार और फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस मिलकर इस सोने को मोनेटाइज करें, तो यह देश की इकोनॉमिक ग्रोथ को बूस्ट कर सकता है। गोल्ड लोन, डिजिटल गोल्ड और ETF जैसे ऑप्शंस को बढ़ावा देकर इस दिशा में काम किया जा सकता है।
सोने की बढ़ती कीमतें और भारतीयों का इस पर भरोसा भविष्य में भी फायदेमंद रहेगा। चाहे ग्लोबल क्राइसिस हो या इन्फ्लेशन, सोना हमेशा भारतीयों की वेल्थ प्रोटेक्शन का सबसे भरोसेमंद साधन रहेगा।
भारतीय घरों में जमा सोना (Gold In India) केवल एक धातु नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, परंपरा और आर्थिक ताकत का प्रतीक है। यह पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था से कई गुना बड़ा है और वैश्विक स्तर पर भारत की फाइनेंशियल पावर को दर्शाता है। सोने की बढ़ती कीमतों ने भारतीयों को और अमीर बनाया है, और भविष्य में भी यह ट्रेंड जारी रहेगा।
भारत सरकार को सोने (Gold) के इम्पोर्ट को कंट्रोल करने और इस भंडार को इकोनॉमिक डेवलपमेंट में इस्तेमाल करने के लिए नई रणनीतियां बनानी होंगी। भारतीयों का सोने से प्यार न केवल उनकी वेल्थ बढ़ा रहा है, बल्कि यह दुनिया को दिखा रहा है कि भारत की हिडन स्ट्रेंथ कितनी बड़ी है।
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