Ajay Rai News: Khabarwala 24 News Lucknow: उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद की कमान बृजलाल खाबरी की जगह अजय राय को सौंपने के कांग्रेस आलाकमान के फैसले को हैरत की नजर से देखा जा रहा है। इस फैसले में पूर्वांचल में पैर जमाने की कोशिश जरूर तलाशी जा रही है। इतना ही नहीं कांग्रेस की निगाह पश्चिम के त्यागी समाज की वोटों पर भी है। भाजपा के इस वोट बैंक में वह सेंध लगाने की तैयारी की जा रही है। आपको बता दें कि पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय कल्पनाथ राय के बाद पूर्वांचल के किसी भूमिहार नेता को इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी गई है।
अजय राय वाराणसी से पांच बार विधायक रहे हैं। वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ वाराणसी सीट से लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं। पार्टी हमेशा उन्हें एक जुझारू नेता के तौर पर देखती रही है। उनकी भूमिहार बिरादरी पूर्वांचल की कुछ सीटों पर चुनावी माहौल बनाने की स्थिति में रहती है। इससे पहले पार्टी ने कुशीनगर जिले से विधायक अजय कुमार लल्लू को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। उनके नेतृत्व में जुझारू छवि बनाने की बाद भी पार्टी को चुनावी सफलता नहीं मिल सकी थी। वर्ष 2022 का विधानसभा चुनाव वह खुद भी हार गए थे और पार्टी मात्र दो सीटों पर सिमट गई थी। इस निराशाजनक प्रदर्शन के बाद लल्लू ने प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था।
गुटबाजी भी बनी एक वजह
कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, प्रदेश अध्यक्ष के रूप में बृजलाल खाबरी की सक्रियता से एक खेमा संतुष्ट नहीं था। प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद वह स्वतंत्र फैसले भी लेने लगे थे। इस कारण यह खेमा उन्हें हटवाने की कोशिश में लगा हुआ था। इस खेमे के विरोध के कारण ही वह प्रदेश कार्यकारिणी भी घोषित नहीं कर पाए थे। वैसे पार्टी के ही एक खेमे को भरोसा था कि प्रमुख दलित चेहरा होने की वजह से लोकसभा चुनाव से पहले उन्हें हटाना संभव नहीं होगा, लेकिन अंतत: यह अनुमान गलत साबित हुआ। एक खेमा उन्हें हटाए जाने की स्थिति में पूर्व सांसद पीएल पुनिया को अध्यक्ष बनाए जाने की उम्मीद लगाए बैठा था। अब देखना दिलचस्प होगा कि अजय राय लोकसभा चुनाव -२०२४ के मद्देनज़र कांग्रेस को खड़ा करने में कितने कामयाब होते हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में त्यागी वोटों पर नजर
कांग्रेस की पश्चिमी उत्तर प्रदेश में त्यागी वोटों में सेंध लगाने पर भी नजर है। हालांकि त्यागी समाज को भाजपा का मजबूत वोट बैंक माना जाता है, लेकिन पिछले कुछ समय से किसी न किसी बहाने से त्यागी समाज के लोगों में भाजपा के प्रति असंतोष सामने आता रहता है। पिछले दिनों भाजपा के कैबिनेट मंत्री के बयान को लेकर त्यागी समाज के लोगों ने रोष व्यक्त किया था। लोकसभा चुनाव नजदीक है एेसे में कांग्रेस का प्रयास रहेगा कि पश्चिमी में त्यागी समाज को अपने साथ जोड़ा जाए। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो त्यागी समाज के व्यक्ति के पास भाजपा में कोई पद नहीं है। हालांकि उम्मीद की जा रही है कि भाजपा भी अपने इस वोट बैंक में सेंध न लगे इसको लेकर पैनी नजर रखे हुए है।
मूल रूप से गाजीपुर के रहने वाले हैं अजय राय
अजय राय का परिवार मूल रूप से गाजीपुर के मलसा गांव का रहने वाला है। तीन पीढ़ियों से बनारस से परिवार जुड़ा रहा। जिस लहुराबीर के आवास पर अजय राय रहते हैं । वहीं उनके भाई अवधेश राय को गोलियों से छलनी कर हत्या कर दी गई थी। बड़े भाई अवधेश राय भी कांग्रेस से जुड़े थे। भाई की हत्या के बाद अजय राय ने भाजपा के साथ राजनीति शुरू की।
27 वर्ष की उम्र में बने विधायक
अजय राय ने केवल 27 वर्ष की उम्र में भाकपा के कद्दावर नेता और लगातार नौ बार के विधायक ऊदल के अलावा अपना दल अध्यक्ष सोने लाल पटेल को हराकर 1996 में पहली बार कोलसला से विधायक बने थे। कोलअसला का नाम बाद में पिण्डरा हो गया। 2002 और 2007 में यहां से बीजेपी के टिकट पर जीते थे। 2009 में अजय राय ने लोकसभा टिकट न मिलने पर सपा का दामन थाम लिया। सपा ने अजय राय को टिकट दिया। भाजपा से मुरली मनोहर जोशी और बसपा से मुख्तार अंसारी मैदान में उतरे। जोशी और मुख्तार अंसारी की लड़ाई में अजय राय पिछड़ गए और तीसरे नंबर पर आ गए। सपा उन्हें ज्यादा समय तक रास नहीं आई और अपने इस्तीफे से रिक्त विधानसभा सीट पर निर्दल उम्मीदवार के रूप में लड़े और एक बार फिर जीत दर्ज की। इस जीत के बाद उन्होंने परिवार की पुरानी परम्परागत पार्टी कांग्रेस का रुख किया। पांचवीं बार लगातार अपना विधानसभा चुनाव उन्होंने 2012 में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में लड़ा और जीत दर्ज कर लंबे अंतराल के बाद कांग्रेस की झोली में कोई विधानसभा सीट डाली थी।
वर्ष कुल प्रत्याशी जीती सीटें मत प्रतिशत
2004 73 09 12.4
2009 69 21 18.5
2014 69 02 7.5
2019 67 01 6.36
