नई दिल्ली, 22 अक्टूबर (khabarwala24)। भारतीय सनातन उत्सव परंपरा को जारी रखते हुए दिल्ली के स्वामीनारायण अक्षरधाम में अन्नकूट गोवर्धन पूजा का भव्य आयोजन किया गया। इस उत्सव से जुड़ने के लिए हजारों लोग श्रद्धा और भक्ति के साथ मंदिर परिसर में एकत्रित हुए। इसमें 1,232 सात्विक शाकाहारी व्यंजन भगवान के सामने थाल रूप में अर्पित किए गए।
परम पूज्य महंतस्वामी महाराज की प्रेरणा से दुनिया भर में 1,800 से अधिक स्वामीनारायण मंदिरों और केंद्रों में दीपावली और अन्नकूट का उत्सव बाकी सभी हिंदू उत्सवों की तरह भक्ति और सद्भाव के साथ मनाया गया।
सुबह 10 बजे से दिल्ली अक्षरधाम में इसकी शुरुआत गोवर्धन महापूजा से हुई, जिसमें संस्था के वरिष्ठ संत और हजारों भक्त शामिल हुए। खासकर मंदिर के प्रांगण में ही गोवर्धन पर्वत की एक विशेष प्रतिकृति बनाई गई जहां संतों ने पारंपरिक ढंग से भगवान की वैदिक महापूजा और दिव्य आरती संपन्न की। वैदिक मंत्रों और भक्तिमय संगीत की गूंज ने पूरे वातावरण को दिव्यता और भक्तिभाव से भर दिया।
गुरुजी महंत स्वामी महाराज ने सभी को आशीर्वाद देते हुए बताया कि इस शुभ अवसर पर सभी तन, मन और धन से सुखी बनें। इस नववर्ष पर सभी सबके गुण ग्रहण करें, निंदा और अवगुण से बचें।
दिल्ली के स्वामीनारायण अक्षरधाम में सुबह से ही श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या मंदिर में देखने को मिली। हजारों श्रद्धालु अन्नकूट दर्शन के लिए मंदिर में पधारे, जिसमें 1,232 सात्विक शाकाहारी व्यंजन भगवान के सामने थाल रूप में अर्पित किए गए। हजारों समर्पित स्वयंसेवक दिन-रात मंदिर में सेवा कार्यों में जुटे रहे, जो कि निःस्वार्थ समर्पण, भक्ति और प्रेम का एक अदभुत उदाहरण है।
देर शाम तक यह भव्य अन्नकूट दर्शन मंदिर में सभी के लिए खुला रहा। इस उत्सव के मर्म में ‘तेरा तुझको अर्पण’ की भावना साफ रूप से झलकती है। यह भक्तों की अटूट आस्था का प्रतीक है कि हमारे पास जो कुछ भी है, वह परमात्मा की कृपा से है और इसे उन्हें समर्पित करने से ही सच्ची प्रसन्नता और संतोष प्राप्त होता है।
दीपावली के बाद शुक्ल प्रतिपदा के दिन मनाया जाने वाला यह उत्सव भगवान के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर प्रदान करता है। कई राज्यों में इसे नव वर्ष का आरंभ माना जाता है।
5,000 साल पहले जब द्वापरयुग में इंद्र के प्रकोप से मूसलाधार वर्षा हुई तब भगवान श्रीकृष्ण ने विशाल गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठ उंगली पर उठाकर गोकुलवासियों की रक्षा की। सातवें दिन जब सब शांत हुआ तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत नीचे रखा और सभी को इसकी पूजा कर अन्नकूट उत्सव करने की आज्ञा दी। तब से हर साल यह उत्सव मनाया जाने लगा।
Source : IANS
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