नई दिल्ली, 18 अक्टूबर (khabarwala24)। छत्तीसगढ़ में दंडकारण्य वन नक्सलियों का गढ़ है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि कभी पौराणिक मान्यताओं में दंडकारण्य वन राक्षसों और खूंखार जानवरों का घर हुआ करता था। इस इलाके का रामायण से गहरा संबंध है और दिवाली के मौके पर खास तौर पर वहां के माओवादी दिवाली को पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।
दंडकारण्य वन का नाता भगवान राम और राक्षसी शूर्पणखा से है। यही वो वन है, जहां से रामायण में रावण वध की रचना रची गई। किंवदंतियों की मानें तो इसी वन में भगवान राम ने मां सीता और लक्ष्मण के साथ वनवास के 12 साल काटे थे।
इसी वन में अपने भाई खर से मिलने पहुंची शूर्पणखा की नजर भगवान राम पर पड़ी और उन पर पहली नजर में मोहित हो गई। भगवान राम विवाहित और मर्यादा पुरुषोत्तम थे, तो उन्होंने शूर्पणखा को भगवान लक्ष्मण से बात करने के लिए कहा।
शूर्पणखा ने लक्ष्मण को अपनी खूबसूरती से रिझाने की कोशिश की, लेकिन गुस्से में आकर भगवान लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काट दी। इसी वन में शूर्पणखा ने अपने भाई रावण से बदला लेने की भी ठानी थी।
माना जाता है कि शूर्पणखा की शादी कालका के बेटे दानवराज विद्युविह्वा से हुई थी। विद्युविह्वा भगवान विष्णु का बड़ा भक्त था और रावण को ये बात पसंद नहीं थी कि वो भगवान विष्णु को पूजता है। ऐसे में गुस्साए रावण ने शूर्पणखा के पति का वध कर दिया। अपने पति की मौत का बदला लेने के लिए और रावण के अहंकार को तोड़ने की कसम खाई।
ऐसे में शूर्पणखा ने रावण के सामने मां सीता की खूबसूरती का इतना बखान किया कि रावण मां सीता की खूबसूरती पर मोहित हो गया और उनका अपहरण करने की योजना बनाई। तो ये कहना गलत नहीं होगा कि दंडकारण्य वन में भी रामायण की नींव रखी गई थी।
दंडकारण्य में आज भी हर साल पूरे रीति-रिवाजों के साथ दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। वहां नरकासुर के वध की कथा भी प्रचलित है और धनतेरस, छोटी दिवाली और दिवाली के दिन त्योहार को उत्साह के साथ मनाया जाता है।
Source : IANS
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