एनआईटी राउरकेला के शोधकर्ताओं ने एंटीबायोटिक से लड़ने के लिए ‘ग्रीन’ विकल्प खोज निकाला

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नई दिल्ली, 15 अक्टूबर (khabarwala24)। एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस की समस्या से निपटने के लिए, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) राउरकेला के शोधकर्ताओं ने औषधीय पौधों के अर्क का उपयोग कर शक्तिशाली एंटीबैक्टीरियल एजेंट तैयार किए हैं जो पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित और प्रभावी हैं।

पारंपरिक एंटीबायोटिक का लगातार प्रयोग करने से सुपरबग्स की समस्या बढ़ती है, जो ट्रीटमेंट में अवरोध पैदा करते हैं।

सर्फेसेस एंड इंटरफेजेज जर्नल में छपी स्टडी के अनुसार इको-फ्रेंडली अप्रोच के साथ जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल्स का प्रयोग किया गया। ये नैनोपार्टिकल्स बैक्टीरियल सेल्स को सामान्य तौर पर कार्य करने से रोकते हैं।

इसके लिए टीम ने कठोर रसायन नहीं बल्कि गेंदे, आम और नीलगिरी के पत्तों और पंखुड़ियों से तैयार अर्क का प्रयोग किया, जिसने जिंक सॉल्ट को जिंक ऑक्साइड नैनोक्रिस्टल में परिवर्तित किया, जिसमें अर्क से अवशोषित फाइटोकंपाउंड शामिल थे।

अर्क-लेपित नैनोकण, विशेष रूप से गेंदे की पंखुड़ियों से बने, रासायनिक रूप से संश्लेषित नैनोकणों या अकेले पौधों के अर्क की तुलना में बैक्टीरिया को मारने में दोगुने प्रभावी थे।

अर्क ने न केवल नैनोकणों के संश्लेषण में सहायता की, बल्कि एक हर्बल शील्ड या फाइटोकोरोना के निर्माण के माध्यम से नैनोकणों को स्थिर करने में भी मदद की। यह जिंक आयनों के उत्सर्जन को नियंत्रित करने में भी मदद करता है और स्थिर जीवाणुरोधी क्रिया सुनिश्चित करता है।

इन अर्क में मौजूद फ्लेवोनोइड्स, एल्कलॉइड्स, टैनिन और फेनोलिक फाइटोकंपाउंड्स में अंतर्निहित जीवाणुरोधी गुण होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप बैक्टीरिया के अस्तित्व पर दोहरा हमला होता है।

एनआईटी राउरकेला के जीवन विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर, प्रो. सुमन झा ने कहा, “हरित-संश्लेषित जिंक ऑक्साइड नैनोकण फाइटो-कोरोना (सतह-अवशोषित पादप-व्युत्पन्न फाइटोकंपाउंड्स के औषधीय गुणों का लाभ उठाते हुए) रोगाणुरोधी प्रतिरोध से निपटने के लिए एक आशाजनक समाधान प्रदान करते हैं।”

देशी पौधों के अर्क का उपयोग इस तकनीक को बढ़ाना आसान बनाता है। यह दृष्टिकोण घरेलू, स्थायी समाधानों को प्रोत्साहित करता है जो आयातित दवाओं और सिंथेटिक एंटीबायोटिक दवाओं पर निर्भरता को कम करते हैं, जो अक्सर समाधान से ज्यादा समस्याओं का कारण बनते हैं।

झा ने कहा, “हमारा लक्ष्य मापनीय, किफायती और पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित रोगाणुरोधी सामग्री विकसित करना है, जिन्हें स्वास्थ्य सेवा, स्वच्छता और खाद्य संरक्षण अनुप्रयोगों में एकीकृत किया जा सके। भारत की समृद्ध जैव विविधता और स्वदेशी पादप संसाधनों का उपयोग करके, हमारा लक्ष्य आत्मनिर्भर नवाचारों का निर्माण करना है जो वैश्विक स्वास्थ्य और स्थिरता लक्ष्यों में सार्थक योगदान दें।”

Source : IANS

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