पटना, 12 अक्टूबर (khabarwala24)। बिहार का सिवान ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टि के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह वही धरती है, जिसने भारत को उसका पहला राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद दिया। समृद्ध भोजपुरी संस्कृति से सराबोर यह इलाका भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर आधुनिक राजनीति तक अपनी गहरी छाप छोड़ चुका है।
सिवान का इतिहास अत्यंत प्राचीन और गौरवशाली है। कहा जाता है कि सिवान नाम का संबंध ‘शिव मॅन’ नामक एक बंद राजा से है, जिनके वंशजों ने बाबर के आगमन तक इस क्षेत्र पर शासन किया था। वहीं, भोजपुरी भाषा में ‘सिवान’ का अर्थ ‘सीमा’ या ‘सरहद’ होता है। यह क्षेत्र नेपाल की दक्षिणी सीमा के पास होने के कारण संभवतः इसी से प्रेरित होकर ‘सिवान’ कहलाया।
पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व की दृष्टि से भी सिवान समृद्ध है। दारौली क्षेत्र का ‘दोन’ स्थल महाभारत के गुरु द्रोणाचार्य से जुड़ा बताया जाता है। यहां बुद्ध से जुड़ी अनेक मान्यताएं हैं। ऐसा कहा जाता है कि भगवान बुद्ध के शरीर की अस्थियों के वितरण से जुड़ी एक कथा इसी क्षेत्र की है और प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्यूएन त्सांग ने भी दोन का उल्लेख किया था। हाल के वर्षों में भेरबानिया गांव से मिली भगवान विष्णु की प्रतिमा ने इस क्षेत्र के वैष्णव परंपरा से जुड़ाव को प्रमाणित किया है।
स्वतंत्रता आंदोलन में सिवान का योगदान अविस्मरणीय है। डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मौलाना मजहरुल हक, ब्रज किशोर प्रसाद, महेंद्र प्रसाद और सैयद मोहम्मद जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों ने इस क्षेत्र की मिट्टी को गौरवान्वित किया। सदाकत आश्रम, जो मौलाना मजहरुल हक द्वारा स्थापित किया गया था, आज भी सांप्रदायिक एकता का प्रतीक है। सिवान में पर्दा-प्रथा विरोधी आंदोलन जैसे सामाजिक आंदोलनों की भी शुरुआत हुई। ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान सिवान के कई युवाओं ने शहादत दी।
आधुनिक सिवान की प्रशासनिक रचना 1970 के दशक में हुई। 1972 में इसे एक स्वतंत्र जिला घोषित किया गया। प्रारंभ में गोपालगंज और सिवान के 23 प्रखंडों को इसमें शामिल किया गया था। बाद में गोपालगंज को अलग जिला बना दिया गया। वर्तमान में सिवान जिले में 21 प्रखंड हैं, जिनमें सिवान, महाराजगंज, दरौली, हुसैनगंज, बसंतपुर, बरहरिया, जिरादेई, हसनपुरा, नौतन और लकड़ी नबीगंज जैसे प्रखंड प्रमुख हैं।
भौगोलिक रूप से सिवान के उत्तर में गोपालगंज, पूर्व में सारण, दक्षिण और पश्चिम में उत्तर प्रदेश के देवरिया व बलिया जिले स्थित हैं। इसकी उपजाऊ भूमि और घाघरा-दाह जैसी नदियां इसे कृषि प्रधान क्षेत्र बनाती हैं। यहां की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि आधारित है। धान, गेहूं, मक्का, गन्ना और दलहन प्रमुख फसलें हैं। पारंपरिक हस्तशिल्प जैसे मिट्टी के बर्तन, पीतल के सामान और “फुल” नामक मिश्रधातु भी यहां की पहचान हैं।
राजनीतिक रूप से सिवान विधानसभा क्षेत्र सिवान लोकसभा का एक हिस्सा है। 1951 में गठित यह एक सामान्य श्रेणी की सीट है। इसमें सिवान प्रखंड (नगरपालिका सहित) और बरहरिया प्रखंड की आठ ग्राम पंचायतें आती हैं। अब तक यहां 18 बार चुनाव हो चुके हैं, जिनमें 1959 का उपचुनाव भी शामिल है। इस सीट का राजनीतिक इतिहास उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। इस सीट को कोई भी पार्टी अपना स्थायी गढ़ नहीं बना पाई।
अब तक के चुनाव परिणामों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सबसे अधिक सात बार जीत दर्ज की है, जिनमें दो बार उसके पूर्ववर्ती जनसंघ के नाम रही। कांग्रेस ने शुरुआती दौर में पांच में से चार चुनाव जीते थे, अंतिम बार 1967 में। वहीं, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने तीन बार, जिनमें 2020 का चुनाव भी शामिल है, जीत हासिल की। जनता पार्टी और जनता दल ने दो-दो बार सफलता प्राप्त की। भाजपा की लगातार तीन बार की जीत का सिलसिला 2020 में टूट गया जब राजद ने सीट पर कब्जा किया।
सिवान की राजनीति में जातीय समीकरण की बड़ी भूमिका रही है। यादव, राजपूत, ब्राह्मण, बनिया और दलित समुदायों का संतुलन चुनाव परिणाम तय करता है। नगर क्षेत्र में मुस्लिम और व्यावसायिक वर्ग का भी प्रभाव है, जबकि ग्रामीण इलाकों में यादव और राजपूत मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
सीवान विधानसभा क्षेत्र में ग्रामीण और शहरी मतदाताओं का मिश्रण देखने को मिलता है। चुनाव आयोग के 2024 के आंकड़ों के अनुसार, इस क्षेत्र की कुल जनसंख्या 5,39,380 है, जिसमें 2,78,697 पुरुष और 2,60,683 महिलाएं शामिल हैं। यहां कुल 3,20,094 मतदाता हैं, जिनमें 1,67,270 पुरुष, 1,52,819 महिलाएं और 5 थर्ड जेंडर मतदाता हैं।
Source : IANS
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