नई दिल्ली, 3 नवंबर (khabarwala24)। घने जंगलों में रहने वाला चिंपांजी केवल औजार बनाना ही नहीं जानता बल्कि उसके बखूबी इस्तेमाल में भी माहिर है और दुनिया इस सच से 4 नवंबर 1960 को रूबरू हुई।
एक युवा ब्रिटिश महिला ने ऐसा दृश्य देखा जिसने विज्ञान की सोच और इंसानियत की परिभाषा बदल दी। वह थीं जेन गुडॉल, और उस दिन उन्होंने देखा कि एक चिंपांजी पेड़ की डाल तोड़कर उससे पत्ते हटाकर उसे दीमक के बिल में डाल रहा था। कुछ ही क्षण बाद जब उसने टहनी बाहर निकाली, तो उस पर चिपके दीमक उसने चाट लिए।
यह एक साधारण घटना लग सकती थी, लेकिन असल में यह एक ऐतिहासिक खोज थी। जेन ने महसूस किया कि वह चिंपांजी ‘टूल’ बना रहा था, यानी एक ऐसी चीज जो तब तक केवल मनुष्यों की पहचान मानी जाती थी।
ब्रिटिश पुराजीव विज्ञानी लुई लीकी को जब जेन ने यह बताया, तो उनका जवाब इतिहास में दर्ज हो गया—“अब या तो हमें इंसान को पुनर्परिभाषित करना होगा, या स्वीकार करना होगा कि चिंपांजी भी इंसान हैं।” उस पल से मानव-विज्ञान और पशु-व्यवहार विज्ञान में एक नया अध्याय शुरू हुआ। दुनिया ने समझा कि बुद्धि, संवेदना और संस्कृति जैसी भावनाएं केवल मनुष्यों तक सीमित नहीं, बल्कि प्रकृति के अन्य जीवों में भी मौजूद हैं।
अपनी किताब ‘रीजन फॉर होप: ए स्पिरिचुअल जर्नी’ (2000) में जेन ने चिंपांजियों के व्यवहार को लेकर कई खुलासे किए। उन्होंने बताया कि हमने पाया कि उनमें भी क्रूरता हो सकती है। वे हमारी तरह, प्रकृति का एक बेहद अंधकारमय पहलू हैं।
जेन गुडॉल ने अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा अफ्रीका के गॉम्बे नेशनल पार्क में चिंपांजियों के बीच बिताया। बिना किसी औपचारिक वैज्ञानिक प्रशिक्षण के, उन्होंने वर्षों तक उनकी भाषा, भावनाओं और रिश्तों को देखा, समझा और दर्ज किया। वह जंगल में रहने वाले जीवों को ‘शोध विषय’ नहीं, बल्कि ‘परिवार’ की तरह देखती थीं। उनके कैमरे और नोटबुक ने विज्ञान को एक नई संवेदना दी।
Source : IANS
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