नई दिल्ली, 14 नवंबर (khabarwala24)। देश के हर हिस्से में भगवान विष्णु अलग-अलग रूपों में विराजमान हैं। कहीं उन्हें विट्ठल कहा जाता है तो कहीं जगन्नाथ के रूप में पूजा जाता है, लेकिन तमिलनाडु के तिरुवत्तार में भगवान राक्षसों का वध करने के बाद योगनिद्रा अवस्था में विराजमान हैं।
कहा जाता है कि इस स्वरूप के दर्शन करने से जीवन की हर बड़ी बाधा का हल हो जाता है क्योंकि स्वयं भगवान विष्णु आपकी रक्षा करने आते हैं।
ढाई हजार साल पुराना श्री आदिकेशव पेरुमल मंदिर कई मायनों में खास है। इस मंदिर में विराजमान भगवान विष्णु की प्रतिमा 22 फीट लंबी है और बड़े से शेषनाथ की पीठ पर एक हाथ से सहारा लेकर सोते हुए दिखते हैं। ये पहली ऐसी भगवान की सोती हुई प्रतिमा है, जिसका पूजन किया जाता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को 18 सीढ़ियां चढ़कर जाना होता है। भगवान विष्णु की ये प्रतिमा सरसों, गुड़ और चूने के पाउडर से बनी है।
माना जाता है कि भगवान विष्णु की योगनिद्रा की प्रतिमा ब्रह्मांड के प्रकट होने का स्वप्न देखती है और भक्तों की बुराई से रक्षा करने का दायित्व भी उठाती है। ये मंदिर ढाई हजार साल पुराना है और भारत के 108 वैष्णव मंदिर दिव्य देशम मंदिरों में से एक है। 108 मंदिरों में से 105 मंदिर भारत में स्थित हैं, जबकि बाकी के मंदिर नेपाल में हैं। मंदिर को लेकर किंवदंती भी प्रसिद्ध है कि लोगों को राक्षसों के अत्याचार से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने विराट रूप धारण किया था।
पुराणों के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने सरस्वती देवी के बिना एक यज्ञ किया था। इस बात से क्रोधित होकर, मां सरस्वती ने यज्ञ की अग्नि से केसन और केशी नामक दो असुर प्रकट किए। उन दोनों ने मिलकर धरती पर उत्पाद मचाया। देवगणों ने भगवान विष्णु से राक्षसों के विनाश की विनती की और भगवान विष्णु ने आदिकेशव पेरुमल का रूप लेकर दोनों राक्षसों का वध किया, वहीं अपना स्थान बना लिया। लेकिन अपने भाइयों के वध का बदला लेने के लिए राक्षसी केसी ने अपनी सहेली नदी कोथाई के साथ मिलकर, नदियों का रूप लेकर भगवान विष्णु को डुबाने की कोशिश की, लेकिन भू देवी ने योग निद्रा में गए भगवान विष्णु को बचाने के लिए जमीन को 50 फीट ऊपर उठा दिया।
आज भी ये मंदिर कोथाई और पहराली नदियों से घिरा है और जमीन से 50 फीट की ऊंचाई पर बना है। श्री आदिकेशव पेरुमल मंदिर का बनाव और वास्तुकला तिरुवनंतपुरम के अनंत पद्मनाभस्वामी मंदिर के जैसी ही दिखती है। मंदिर के गृभग्रह का बनाव भी उसी मंदिर से मिलता है। गृभग्रह में जाने के लिए तीन रास्ते बनाए गए हैं। कुछ खास मौकों पर सूर्य की किरणें सीधे मंदिर के गृभग्रह से होते हुए भगवान विष्णु पर गिरती हैं।
वैकुंठ एकादशी के मौके पर मंदिर में बड़े अनुष्ठान किए जाते हैं। वैकुंठ एकादशी पर भगवान 4 महीने बाद योगनिद्रा से उठते हैं, और इस मंदिर में भगवान विष्णु योगनिद्रा की अवस्था में ही भक्तों को दर्शन देते हैं।
Source : IANS
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