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अहोई अष्टमी पर राधाकुंड में स्नान का क्या है महत्व, क्यों लगती है भीड़

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नई दिल्ली, 12 अक्टूबर (khabarwala24)। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि सोमवार को पड़ रही है। इस दिन अहोई अष्टमी, कालाष्टमी और मासिक कृष्ण जन्माष्टमी जैसे पवित्र पर्व हैं। ये तीनों पर्व भक्तों के लिए श्रद्धा, भक्ति और आस्था का प्रतीक हैं, जो अलग-अलग मान्यताओं और पूजा विधियों के साथ मनाए जाते हैं।

द्रिक पंचांग के अनुसार, सोमवार को सूर्य कन्या राशि में और चंद्रमा 14 अक्टूबर सुबह 5 बजकर 58 मिनट तक मिथुन राशि में रहेगा। इसके बाद कर्क राशि में गोचर करेगा। अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 44 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। सप्तमी का समय 12 अक्टूबर दोपहर 2 बजकर 16 मिनट से शुरू होकर 13 अक्टूबर दोपहर 12 बजकर 24 मिनट तक रहेगा।

अहोई अष्टमी का उल्लेख नारद पुराण और पद्म पुराण में मिलता है। नारद पुराण के अनुसार, यह व्रत समृद्धि और दीर्घायु प्रदान करता है, जबकि पद्म पुराण इसे संतान की सुरक्षा, लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण बताता है। यह व्रत माताएं अपने पुत्रों की लंबी उम्र और सुखी जीवन की कामना के लिए रखती हैं। इस दिन निर्जल उपवास रखा जाता है, जो भोर से शुरू होकर सायंकाल तक चलता है। व्रत का पारण तारों के दर्शन के बाद किया जाता है, हालांकि कुछ स्थानों पर चंद्रमा के दर्शन के बाद भी व्रत खोला जाता है। चूंकि चंद्रोदय देर से होता है, इसलिए तारों के दर्शन को प्राथमिकता दी जाती है।

यह पर्व करवा चौथ के चार दिन बाद और दीवाली से आठ दिन पहले मनाया जाता है। उत्तर भारत में विशेष रूप से लोकप्रिय इस व्रत को अहोई आठें भी कहा जाता है। करवा चौथ की तरह ही यह भी निर्जल व्रत है, जिसमें माताएं संध्या समय तारों के दर्शन के बाद व्रत खोलती हैं।

इस दिन राधाकुंड में स्नान का विशेष महत्व है, खासकर उन दंपत्तियों के लिए जो संतान प्राप्ति में कठिनाई का सामना कर रहे हैं। मान्यता है कि राधाकुंड में मध्यरात्रि के निशिता काल में डुबकी लगाने से राधा रानी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और संतान प्राप्ति की मनोकामना पूरी होती है। कई दंपत्ति इस आस्था के साथ गोवर्धन पहुंचते हैं और कच्चा सफेद पेठा को लाल वस्त्र में सजाकर राधा रानी को अर्पित करते हैं। जिनकी मनोकामना पूरी होती है, वे दोबारा राधाकुंड आकर आभार प्रकट करते हैं।

इसी के साथ ही इस दिन कालाष्टमी भी है। इसका उल्लेख शिव पुराण, नारद पुराण और आदित्य पुराण में मिलता है, जो भगवान भैरव के कालभैरव अवतार की उत्पत्ति और महत्व को दर्शाते हैं। प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी मनाई जाती है, जिसमें भक्त भगवान कालभैरव की पूजा करते हैं और उपवास रखते हैं। साल की सबसे महत्वपूर्ण कालाष्टमी को कालभैरव जयंती कहा जाता है, जो उत्तर भारत में मार्गशीर्ष माह और दक्षिण भारत में कार्तिक माह में मनाई जाती है। यह वह दिन है जब भगवान शिव ने कालभैरव रूप में अवतार लिया था।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, कालाष्टमी का व्रत तब किया जाता है जब अष्टमी तिथि रात्रि में प्रबल हो। इस दिन भक्त भगवान कालभैरव की विधिवत पूजा करते हैं और उनकी कृपा से भय, शत्रु और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति की कामना करते हैं।

मासिक कृष्ण जन्माष्टमी: प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। इस दिन भक्त भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं और उनके आशीर्वाद से दुखों से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं। ब्रह्ममुहूर्त में स्नान के बाद पूजा शुरू की जाती है, जिसमें फूल, अक्षत और तुलसी दल अर्पित किए जाते हैं। धूप-दीप जलाकर बाल गोपाल की आरती की जाती है और माखन-मिश्री व मेवे का भोग लगाया जाता है। प्रसाद वितरण से पुण्य प्राप्त होता है।

Source : IANS

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