Khabarwala 24 News New Delhi : Mangalnath Temple कुंडली मेंं यदि मंगलदोष हो यानि जातक मांगलिक हो तो उसे बहुत गुस्सा आता है। इसके साथ ही उसकी शादी में विलंब होता है और दांपत्य जीवन में भी झंझट बनी रहती है। ये दिक्कतें दूर करने के लिए मंगलनाथ मंदिर में जाकर भात पूजा का विधान है। इससे मांगलिक दोष कम होता है और झंझटें खत्म होने लगती हैं। नवग्रहों में मंगलदेव का बहुत महत्व है। मंगल ग्रह नवग्रहों के सेनापति के पद पर विद्यमान है। उनका वाहन मेंढ़ा (भेड़) है। मंगल ग्रह अंगारक एवं कुज के नाम से भी जाने जाते हैं और मेष तथा वृश्चिक राशि के स्वामी हैं। मंगल ग्रह का वर्ण लाल है। इनके इष्ट देव भगवान शिव हैं। मंगलनाथ मंदिर में मंगलवार तथा भौम प्रदोष पर भातपूजा व गुलाल पूजा का विशेष महत्व है। इस मंदिर के प्रांगण में भूमि माता की प्रतिमा भी स्थापित है। माना जाता है कि मंगल देव की माता भूमि ही हैं। स्कंद पुराण में इसका उल्लेख मिलता है जिसके अनुसार नवग्रहों में से एक मंगल ग्रह का जन्म स्थान अवंतिका उज्जैन है। अब इसे ही मंगलनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है।
पांच किमी दूर शिप्रा नदी के किनारे मंदिर (Mangalnath Temple)
उज्जैन को मंदिरों की राजधानी कहा जाता है। यहां महाकाल मंदिर के साथ ही हनुमानजी, मां काली, गणेशजी के भी अनेक विख्यात मंदिर है। खास बात यह है कि यहां भगवान मंगलनाथ का भी मंदिर है जोकि नवग्रहों के सेनापति मंगल ग्रह का जन्म स्थल माना जाता है। यह मंदिर शहर से करीब 5 किलोमीटर दूर शिप्रा नदी के किनारे स्थित है। यहां खासतौर पर मंगलदोष दूर करने के लिए मंगलदेव की पूजा की जाती है।
वरदान प्राप्त अंधकासुर ने त्राहि-त्राहि मचाई (Mangalnath Temple)
शास्त्रों के अनुसार उज्जैन में अंधकासुर नामक दैत्य ने भगवान शिव की तपस्या से वरदान प्राप्त किया था कि मेरा रक्त भूमि पर गिरे तो मेरे जैसे अनेक राक्षस उत्पन्न हों। भगवान शिव से अंधकासुर ने वरदान प्राप्त कर पृथ्वी पर त्राहि-त्राहि मचा दी..सभी देवता, ऋषियों, मुनियों और मनुष्यों का वध करना शुरू कर दिया। देवता, ऋषि-मुनि आदि शिव के पास गए और प्रार्थना की कि आपने अंधकासुर को जो वरदान दिया है, उसका निवारण करें।
शिव और अंधकासुर के बीच भीषण युद्ध (Mangalnath Temple)
इस पर शिव ने स्वयं अंधकासुर से युद्ध करने का निर्णय लिया। शिव और अंधकासुर के बीच भीषण युद्ध कई वर्षों तक चला। युद्ध करते समय शिव के पसीने की बून्द भूमि के गर्भ पर गिरी, उससे मंगलनाथ की शिव पिंडी रूप में उत्पत्ति हुई। युद्ध के समय शिव का शस्त्र अंधकासुर को लगा, तब जो रक्त की बूंदें आकाश से भूमि के गर्भ पर शिव पुत्र भगवान मंगल पर गिरने लगीं, तो मंगल अंगार (लाल) स्वरूप के हो गए।
मंगलनाथ मंदिर में भात पूजा कराई जाती (Mangalnath Temple)
अंगार स्वरूप होने से रक्त की बूंदें भस्म हो गईं और शिव द्वारा अंधकासुर का वध हो गया। शिव ने मंगलनाथ से प्रसन्न होकर 21 भागों के अधिपति एवं नवग्रहों में से एक ग्रह की उपाधि प्रदान की। शिव पुत्र मंगल उग्र अंगारक स्वभाव के हो गए थे। तब ब्रम्हाजी, ऋषियों, मुनियों, देवताओं ने मंगल की उग्रता की शांति के लिए दही और भात का लेपन किया, उससे मंगल ग्रह की उग्रता की शान्ति हुई। यही कारण है कि मंगलनाथ मंदिर में भात पूजा कराई जाती है।