Sunday, May 18, 2025

Hinglaj Jayanti 2024 : 51 शक्तिपीठों में से एक और सुरम्य पहाड़ियों की तलहटी में स्थित है माता हिंगलाज का मंदिर, जानें पौराणिक बातें

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Khabarwala 24 News New Delhi : Hinglaj Jayanti 2024 हिंगोल नदी के समीप हिंगलाज क्षेत्र में सुरम्य पहाड़ियों की तलहटी में स्थित है माता हिंगलाज का मंदिर। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को माता हिंगलाज की जयंती मनाई जाती है। वर्ष 2024 में माता हिंगलाज जयंती 06 अप्रैल, शनिवार को मनाई जा रही है, लेकिन पंचांग भेद के चलते यह 07 अप्रैल 2024, रविवार को भी मनाए जाने की संभावना है। माता का मंदिर प्रधान 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिंगलाज ही वह जगह है, जहां माता का सिर गिरा था। यहां माता सती कोटटरी रूप में जबकि भगवान शंकर भीमलोचन भैरव रूप में प्रतिष्ठित हैं। बृहन्नील तंत्रानुसार यहां सती का ‘ब्रह्मरंध्र’ गिरा था। देवी के शक्तिपीठों में कामाख्या, कांची, त्रिपुरा, हिंगलाज प्रमुख शक्तिपीठ हैं। हिंगुला का अर्थ सिन्दूर है। मंदिर के साथ ही गुरु गोरखनाथ का चश्मा है। मान्यता है कि माता हिंगलाज देवी यहां सुबह स्नान करने आती हैं। वहां से शिवकुण्ड (चंद्रकूप) जाते हैं, जहां अपने पाप की घोषणा कर नारियल चढ़ाते हैं, जिनकी पाप मुक्ति हो गई और दरबार की आज्ञा मिल गई, उनका नारियल तथा भेंट स्वीकार हो जाती है वरना नारियल वापस लौट आता है। चंद्रकूप तीर्थ पहाड़ियों के बीच में धूम्र उगलता एक ऊंचा पहाड़ है। वहां विशाल बुलबुले उठते रहते हैं। आग तो नहीं दिखती किंतु अंदर से यह खौलता, भाप उगलता ज्वालामुखी है। हिंगलाज को ‘आग्नेय शक्तिपीठ तीर्थ’ भी कहते हैं, क्योंकि वहां जाने से पूर्व अग्नि उगलते चंद्रकूप पर यात्री को जोर-जोर से अपने गुप्त पापों का विवरण देना पड़ता है तथा भविष्य में उसकी पुनरावृत्ति न करने का वचन भी देना पड़ता है। आइए जानते हैं यहां देवी मां हिंगलाज के बारे में खास जानकारी…

पाकिस्तान में नानी मां का मंदिर भी कहा जाता है (Hinglaj Jayanti 2024)

Hinglaj Jayanti 2024 पाकिस्तान द्वारा जबरन कब्जाए गए बलूचिस्तान में माता का मंदिर है, जो 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर की माता को संपूर्ण पाकिस्तान में नानी मां का मंदिर भी कहा जाता है। यहां की यात्रा को ‘नानी का हज’ भी कहा जाता है। मुसलमान हिंगुला देवी को ‘नानी’ तथा वहां की यात्रा को ‘नानी का हज’ कहते हैं। हिन्दू से ज्यादा मुस्लिम माता को मानते हैं। पूरे बलूचिस्तान के मुसलमान भी इनकी उपासना एवं पूजा करते हैं। वे मुस्लिम स्त्रियां जो इस स्थान का दर्शन कर लेती हैं उन्हें हाजियानी कहते हैं। उन्हें हर धार्मिक स्थान पर सम्मान के साथ देखा जाता है। मुसलमानों के लिए यह नानी पीर का स्थान है।

पश्चिमी राजस्थान के हिन्दुओं की आस्था का केंद्र (Hinglaj Jayanti 2024)

Hinglaj Jayanti 2024 हिंगलाज क्षत्रिय समाज की कुल देवी हैं। कहते हैं, जब 21 बार क्षत्रियों का संहार कर परशुराम आए, तब बचे राजागण माता हिंगलाज देवी की शरण में गए और अपनी रक्षा की याचना की, तब मां ने उन्हें ब्रह्म क्षत्रिय कहकर अभयदान दिया। हिंगलाज शक्तिपीठ पश्चिमी राजस्थान के हिन्दुओं की आस्था का केंद्र है। इस मंदिर पर गहरी आस्था रखने वाले लोगों का कहना है कि हिन्दू चाहे चारों धाम की यात्रा क्यों ना कर ले, काशी के पानी में स्नान क्यों ना कर ले, अयोध्या के मंदिर में पूजा-पाठ क्यों ना कर लें, लेकिन अगर वह हिंगलाज देवी के दर्शन नहीं करता तो यह सब व्यर्थ हो जाता है।

चारण वंश के लोगों की मानी जाती है कुल देवी (Hinglaj Jayanti 2024)

Hinglaj Jayanti 2024 प्रमुख रूप से यह मंदिर चारण वंश के लोगों की कुल देवी मानी जाती है। मां के मंदिर के नीचे अघोर नदी है। कहते हैं कि रावण वध के पश्चात् ऋषियों ने राम से ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति हेतु हिंगलाज में यज्ञ करके कबूतरों को दाना चुगाने को कहा। श्रीराम ने वैसे ही किया। उन्होंने ग्वार के दाने हिंगोस नदी में डाले। वे दाने ठूमरा बनकर उभरे, तब उन्हें ब्रह्महत्या दोष से मुक्ति मिली। वे दाने आज भी यात्री वहां से जमा करके ले जाते हैं। इस मंदिर से जुड़ी एक और मान्यता व्याप्त है। कहा जाता है कि हर रात इस स्थान पर सभी शक्तियां एकत्रित होकर रास रचाती हैं और दिन निकलते हिंगलाज माता के भीतर समा जाती हैं।

ऊंची पहाड़ी पर बनी एक गुफा में विग्रह रूप (Hinglaj Jayanti 2024)

Hinglaj Jayanti 2024 भगवान परशुराम के पिता महर्षि जमदग्रि ने यहां घोर तपस्या की थी। उनके नाम पर आसाराम नामक स्थान अब भी यहां उपस्थित है। कहा जाता है कि इस प्रसिद्ध मंदिर में गुरु गोरखनाथ, गुरु नानक देव, दादा मखान जैसे महान संत आ चुके हैं। 16वीं सदी में खाकी अखाड़ा के महंत भगवानदास ने सांसारिक लोगों के कल्याण के लिए बाड़ी में मां हिंगलाज को ज्योति के रूप में स्थापित किया था। ऊंची पहाड़ी पर बनी एक गुफा में माता का विग्रह रूप विराजमान है। पहाड़ की गुफा में माता हिंगलाज देवी का मंदिर है जिसका कोई दरवाजा नहीं। मंदिर की परिक्रमा में गुफा भी है। यात्री गुफा के एक रास्ते से दाखिल होकर दूसरी ओर निकल जाते हैं।

मंदिर में दाखिल होने के लिए पत्थर की सीढिय़ां (Hinglaj Jayanti 2024)

Hinglaj Jayanti 2024 माता हिंगलाज मंदिर परिसर में श्रीगणेश, कालिका माता की प्रतिमा के अलावा ब्रह्मकुंड और तीरकुंड आदि प्रसिद्ध तीर्थ हैं। हिंगलाज मंदिर में दाखिल होने के लिए पत्थर की सीढिय़ां चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर में सबसे पहले श्री गणेश के दर्शन होते हैं जो सिद्धि देते हैं। सामने की ओर माता हिंगलाज देवी की प्रतिमा है जो साक्षात माता वैष्णो देवी का रूप हैं। मुस्लिम काल में इस मंदिर पर मुस्लिम आक्रांताओं ने कई हमले किए लेकिन स्थानीय हिन्दू और मुसलमानों ने इस मंदिर को बचाया। कहते हैं कि जब यह हिस्सा भारत के हाथों से जाता रहा तब कुछ आतंकवादियों ने इस मंदिर को क्षती पहुंचाने का प्रयास किया था लेकिन वे सभी एक चमत्कार से हवा में लटक गए थे।

कराची से 10 किलोमीटर दूर हॉव नदी से यात्रा (Hinglaj Jayanti 2024)

हिंगलाज की यात्रा कराची से 10 किलोमीटर दूर हॉव नदी से शुरू होती है। हिंगलाज जाने के पहले लासबेला में माता की मूर्ति का दर्शन करना होता है। यह दर्शन छड़ीदार (पुरोहित) कराते हैं। इस सिद्ध पीठ की यात्रा के लिए दो मार्ग हैं- एक पहाड़ी तथा दूसरा मरुस्थली। यात्री जत्था कराची से चल कर लसबेल पहुंचता है और फिर लयारी। कराची से छह-सात मील चलकर “हाव” नदी पड़ती है। यहीं से हिंगलाज की यात्रा शुरू होती है। यहीं शपथ ग्रहण की क्रिया सम्पन्न होती है, यहीं पर लौटने तक की अवधि तक के लिए संन्यास ग्रहण किया जाता है।

जरा सी पीड़ा नहीं होती ना ही शरीर को नुकसान (Hinglaj Jayanti 2024)

कहते हैं कि एक बार यहां माता ने प्रकट होकर वरदान दिया कि जो भक्त मेरा चूल चलेगा उसकी हर मनोकामना पूरी होगी। चूल एक प्रकार का अंगारों का बाड़ा होता है जिसे मंदिर के बाहर 10 फिट लंबा बनाया जाता है और उसे धधकते हुए अंगारों से भरा जाता है जिस पर मन्नतधारी चल कर मंदिर में पहुंचते हैं और ये माता का चमत्कार ही है कि मन्नतधारी को जरा सी पीड़ा नहीं होती है और ना ही शरीर को किसी प्रकार का नुकसान होता है, लेकिन आपकी मन्नत जरूर पूरी होती है। हालांकि आजकल यह परंपरा नहीं रही।

जय बोलकर मरुतीर्थ की यात्रा की जाती प्रारंभ (Hinglaj Jayanti 2024)

यहीं पर छड़ी का पूजन होता है और यहीं पर रात में विश्राम करके प्रात:काल हिंगलाज माता की जय बोलकर मरुतीर्थ की यात्रा प्रारंभ की जाती है। रास्ते में कई बरसाती नाले तथा कुएं भी मिलते हैं। इसके आगे रेत की एक शुष्क बरसाती नदी है। इस इलाके की सबसे बड़ी नदी हिंगोल है जिसके निकट चंद्रकूप पहाड़ हैं। चंद्रकूप तथा हिंगोल नदी के मध्य लगभग 15 मील का फासला है। हिंगोल में यात्री अपने सिर के बाल कटवा कर पूजा करते हैं तथा यज्ञोपवीत पहनते हैं। उसके बाद गीत गाकर अपनी श्रद्धा की अभिव्यक्ति करते हैं।

कोई सड़क नहीं यहां से पैदल चलना पड़ता है (Hinglaj Jayanti 2024)

मंदिर की यात्रा के लिए यहां से पैदल चलना पड़ता है क्योंकि इससे आगे कोई सड़क नहीं है इसलिए ट्रक या जीप पर ही यात्रा की जा सकती है। हिंगोल नदी के किनारे से यात्री माता हिंगलाज देवी का गुणगान करते हुए चलते हैं। इससे आगे आसापुरा नामक स्थान आता है। यहां यात्री विश्राम करते हैं। यात्रा के वस्त्र उतार कर स्नान करके साफ कपड़े पहन कर पुराने कपड़े गरीबों तथा जरूरतमंदों के हवाले कर देते हैं। इससे थोड़ा आगे काली माता का मंदिर है। इतिहास में उल्लेख मिलता है कि यह मंदिर 2000 वर्ष पूर्व भी यहीं विद्यमान था।

पहाड़ पर चढ़ाई करके मीठे पानी के तीन कुएं (Hinglaj Jayanti 2024)

इस मंदिर में आराधना करने के बाद यात्री हिंगलाज देवी के लिए रवाना होते हैं। यात्री चढ़ाई करके पहाड़ पर जाते हैं जहां मीठे पानी के तीन कुएं हैं। इन कुंओं का पवित्र जल मन को शुद्ध करके पापों से मुक्ति दिलाता है। इसके निकट ही पहाड़ की गुफा में माता हिंगलाज देवी का मंदिर है जिसका कोई दरवाजा नहीं। मंदिर की परिक्रमा में गुफा भी है। यात्री गुफा के एक रास्ते से दाखिल होकर दूसरी ओर निकल जाते हैं। मंदिर के साथ ही गुरु गोरखनाथ का चश्मा है। मान्यता है कि माता हिंगलाज देवी यहां सुबह स्नान करने आती हैं।

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