Khabarwala 24 News New Delhi : Caste Census India जातिगत जनगणना को सामाजिक न्याय के लिए दरवाजा खोलने का पहला कदम बताया जा रहा है। देश में पहली बार जाति के आधार पर जनगणना होने जा रही है। मोदी सरकार ने पिछले हफ्ते आगामी जनगणना के साथ जातियों की भी गिनती करने का फैसला किया है। कांग्रेस ने जातिगत जनगणना के फैसले का स्वागत करते हुए आरक्षण की 50 फीसदी लिमिट को खत्म करने की मांग उठा दी है। इसके साथ ही बीजेपी के अगुवाई वाले एनडीए के घटक दलों ने ओबीसी आरक्षण के वर्गीकरण वाली रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने की मांग की है।
मोदी सरकार जातीय जनगणना के जरिए सिर्फ जातियों का आंकड़ा ही नहीं जुटाएगी बल्कि ये भी पता लगाएगी कि उनकी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति क्या है। ऐसे में ओबीसी आरक्षण के समीक्षा की रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट पहले ही राष्ट्रपति को सौंपी जा चुकी है, जिसे लागू करने की मांग उठने लगी है।
ओबीसी आरक्षण के वर्गीकरण का मुद्दा (Caste Census India)
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि एक बार जाति जनगणना के आंकड़े जारी होने के बाद, सरकार को ओबीसी के भीतर उप-वर्गीकरण के मुद्दे का रास्ता हल करना होगा। रोहिणी आयोग की स्थापना इस मुद्दे से निपटने के लिए ही की गई थी। कम प्रभावशाली ओबीसी समूहों की पहचान करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनकी सरकारी नौकरियों तक बेहतर हो सके। हालांकि, रोहिणी आयोग ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी, लेकिन जाति जनगणना के आंकड़े आने के साथ ही ओबीसी आरक्षण को पुनर्गठित करने मांग उठने लगी है। बीजेपी के सहयोगी दलों ने रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की भी मांग की है।
यादव और कुर्मी समुदाय की टेंशन (Caste Census India)
मोदी सरकार ने साल 2017 में ओबीसी आरक्षण के वर्गीकरण के लिए रोहिणी कमीशन का गठन किया गया था ताकि ओबीसी की सभी जातियों को आरक्षण के लाभों का समान वितरण सुनिश्चित किया जा सके। दिल्ली हाईकोर्ट के रिटायर मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी की अध्यक्षता वाली चार सदस्यीय कमीशन ने 2023 में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी, जिसे अभी सार्वजनिक किया जाना बाकी है।
रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट में ओबीसी के आरक्षण को तीन श्रेणी में बांटने की सिफारिश की गई है। अगर रोहिणी कमीशन को अमलीजामा पहनाने का काम किया जाता है तो ओबीसी की यादव और कुर्मी समुदाय की सियासी टेंशन बढ़ा सकती हैं।
रोहिणी कमीशन को लागू करने की मांग (Caste Census India)
बिहार में बीजेपी के सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा ने कहा है कि जातिगत जनगणना के फैसले के बाद विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं रह गया है और वो इसका श्रेय लेने की कोशिश कर रहे हैं इसलिए अब सरकार को ओबीसी और अनुसूचित जाति के बीच उप-वर्गीकरण पर विचार करना चाहिए। बिहार में ‘अति पिछड़ा’ और ‘महा दलित’ हैं। उनके लिए 1977 में राज्य सेवाओं में आरक्षण लागू किया गया था।
इसे केंद्रीय स्तर पर भी लागू किया जाना चाहिए। इसके लिए सरकार रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक करे। निषाद पार्टी के संजय निषाद ने सुझाव दिया कि जातियों के वर्गीकरण में कुछ त्रुटियां हैं, जिन्हें ठीक करने की भी जरूरत है।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात (Caste Census India)
कुछ जातियां हैं, जो ओबीसी के अंतर्गत आती हैं, लेकिन वे मूल रूप से दलित हैं, जिन्हें ठीक करने की आवश्यकता है। इसी तरह आरक्षण लाभों के समान वितरण के लिए ओबीसी और अनुसूचित जाति के बीच उप-वर्गीकरण की आवश्यकता है। उन्होंने मांग किया कि उन लोगों के लिए अलग-अलग श्रेणियां बनाई जानी चाहिए जो आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं और जिन्हें अभी तक लाभ नहीं मिला है। जाति जनगणना की घोषणा के बाद सुभासपा प्रमुख और योगी सरकार में मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने ओबीसी आरक्षण के वर्गीकरण को लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की है।
आरक्षण का लाभ कुछ जातियों को मिला (Caste Census India)
रोहिणी कमीशन ने ओबीसी में शामिल 2633 जातियों को लेकर अध्ययन किया, जिसमें पाया कि 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण का लाभ सभी ओबीसी की जातियों को नहीं मिल पा रहा है, बल्कि कुछ ही जातियों को फायदा मिला है। यादव और कुर्मी जैसी जातियां उत्तर भारत की हैं, जिन्हें ओबीसी का लाभ मिला है। ऐसे में माना जाता है कि रोहिणी कमीशन 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण को तीन या चार श्रेणी में बांटने के सुझाव दिए हैं। केंद्र की ओबीसी लिस्ट में उन ओबीसी जातियों को शामिल करने की सिफारिश की है, जिन्हें राज्यों में ओबीसी का दर्जा था लेकिन केंद्र की लिस्ट से बाहर थे।
यादव और कुर्मी की क्या बढ़ेगी चिंता (Caste Census India)
कमीशन की ही मानें तो ओबीसी आरक्षण का सबसे ज्यादा फायदा यादव, कुर्मी, मौर्य, जाट समुदाय को मिल रहा जबकि अति-पिछड़ी जातियों को उतना लाभ नहीं मिला। पिछले तीन दशकों में ओबीसी आरक्षण का 50 फीसदी लाभ 48 जातियों को मिला। इसी के चलते ओबीसी की अन्य दूसरी जातियां लंबे समय से ओबीसी आरक्षण में बंटवारे की मांग उठाती रही हैं। यूपी, बिहार और झारखंड जैसे राज्य में यादव और कुर्मी का ओबीसी समुदाय पर दबदबा है। जाति जनगणना के साथ ही ओबीसी समूहों के बीच ही एक नई बहस छिड़ सकती है।
सैकड़ों जातियां हैं, जिनको लाभ नहीं (Caste Census India)
यूपी और बिहार जैसे राज्यों में मौर्य और कुशवाह जैसे पिछड़ी जाति समूह यादवों को चुनौती दे रहे हैं। ओबीसी आरक्षण का फायदा मिलने का जिन पिछड़ी जातियों पर आरोप लगता है। उनमें प्रमुख रूप से कुर्मी,यादव, मौर्य, जाट, गुर्जर, लोध, माली जैसी जातियां हैं। वहीं, मल्लाह, निषाद, केवट, बिंद, कहार, कश्यप, धीमर, रैकवार, तुरैहा, बाथम,भर, राजभर, मांझी, धीवर, प्रजापति, कुम्हार, मछुवा, बंजारा, घोसी, नोनिया जैसी सैकड़ों जातियां हैं, जिनको ओबीसी के आरक्षण का लाभ यादव और कुर्मी की तरह नहीं मिला।
एक नई बहस को जन्म मिल सकता है (Caste Census India)
जातिगत जनगणना के साथ ही सरकार ओबीसी आरक्षण के वर्गीकरण का फैसला करती है तो कुर्मी और यादव के लिए चिंता बढ़ जाएगी। इसके अलावा जाति आंकड़े आने के बाद ये भी पता चल सकेगा कि किस समाज की कितनी संख्या है और उसकी हिस्सेदारी सरकारी नौकरी से लेकर राजनीति तक में कितनी है। ऐसे में ओबीसी की तमाम जातियां निकलकर सामने आएंगी कि समाज में कितने पीछे हैं और उन्हें आरक्षण का समान लाभ अभी तक नहीं मिला जबकि ओबीसी की कई जातियों का लाभ मिला है। इस तरह एक नई बहस को जन्म मिल सकता है।